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Thursday, December 13, 2012

पानी पर दुमदार दोहे


पानी का जल स्रोत जब, उगल रहा है रेत
मधुवन है  सूना  हुआ,  सूना  है  साकेत
                            रहीमा  रोना  रोये.

भूजल का तल घट गया, छूता है पाताल
शेषनाग की नागिनी, चूम  रही है  गाल 
                      पियासी  होगी  शायद.

रोता है माथा पकड़, भष्मी का अवशेष
गंगा तेरी गोद  में, पानी  बचा  न  शेष
                     फूल  में  कहाँ  बहाऊँ.

जल के वातावरण में, पलता जीवनमूल्य
जीवलोक है घुट रहा, पानी नहीं अमूल्य  
                          बढ़ी बेचैनी दिल में.

टोंटी  में   पानी   नहीं,   पंछी    हैं   बेचैन
सागर तट पर बैठकर, बिलख रहे दिन-रैन 
                           कौन  है  सुननेवाला.

एक ततइया दौड़कर, आई  नल  के पास
नल बेचारा भी खड़ा, मुखड़ा लिये उदास
                             नहीं है पारो पानी.

रचनाकार- श्री शिवानंद सिंह "सहयोगी"


संपर्क-  "शिवभा" ए- 233, गंगानगर, मवाना मार्ग, मेरठ- 250001
दूरभाष- 09412212255, 0121-2620880
*चित्र गूगल से साभार*

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति...

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  2. ओह यह तो गंभीर समस्या है और अपने सहज ही समझा दिया, बधाई।

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!