विषय: भ्रूण -हत्या
करते नित्य भ्रूण -हत्या अब होता कैसा महापाप ।
अपनी सन्तानों का वध कर खुश होते हम और आप।।
घर के लोग हुये उत्साहित जब से भ्रूण गर्भ में आया ।
बाल वृद्ध नर-नारी सबने एक साथ मिल जश्न मनाया ।।
शिशु को अभी गर्भ में आये माह हुआ है केवल तीजा ।
कहते घर के लोग कराने हेतु जाँच तू बहू अभी जा ।।
बेटी है तो गर्भपात ,सुन गर्भवती माँ गयी काँप ।
अपनी सन्तानों का वध कर ..............
विडम्बना ये ऐसे निर्णय कभी -कभी ले जन्म दायिनी ।
गर्भपात को करे विवश पति, उसको जो है अंकशायिनी ।।
बेटा -बेटी में अन्तर कर, प्रकृति व्यवस्था छेड रहे हैं ।
निज उपवन लिंगानुपात की डाल विभाजक मेड रहे हैं ।।
होगा कहाँ प्रेयसी -प्रिय के मिलने का वह मधुर ताप ।
अपनी सन्तानों का वध कर खुश होते हम और आप।।
भेदभाव यदि बना रहा तो एक समय ऐसा आयेगा ।
नारी एक, पुरुष एकाधिक पशुवत जीवन हो जायेगा ।।
अनाचार अपराधों के घेरे में मानव जीवन होगा ।
दानवता का अट्रटहास ,नित मानवता का क्रन्दन होगा
बेटी परधन सुत अपना, बन्द करें प्राचीन जाप ।
अपनी सन्तनों का वध कर खुश होते हम और आप।।
रचनाकार- श्री अशोक पाण्डेय "अनहद "
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