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Monday, October 29, 2012

नीयत (लघु कथा)

चित्र गूगल बाबा से साभार 

   यमराज के दरबार में यमदूतों द्वारा पृथ्वी से उठाए गए जीवों को चित्रगुप्त बारी-बारी से यमराज के सामने हाजिर कर रहे थे. 

जैसे ही राजेश का नंबर आया उसके उदास चेहरे को देख यमराज ने उसके दुःख का कारण पूछा, तो  वह बोला, "मैंने अपने जीवन में इतनी मेहनत की. अच्छी शिक्षा प्राप्त की और रूपए-पैसे की भी मेरे पास कोई कमी नहीं थी. फिर भी मैं अपने जीवन में उतना सफल नहीं हो पाया, जितना कि मेरा दोस्त मानस. कल रात भी जब हम दोनों साथ-साथ यात्रा कर रहे थे, तो कार दुर्घटना में मेरी तो मौत हो गई, लेकिन वह बाल-बाल बच गया."

यमराज मुस्कुराए और बोले, "हे जीव तुम अपनी आँखें बंद करो और स्वयं ही अपने आप से यह पूछो, कि ऐसा क्यों हुआ?

राजेश अपनी आँखें बंद करके मन ही मन सोचता है, "मैं मेहनती था, मानस भी मेहनती था. लगन मेरे भीतर थी, तो उसमें भी थी. हाँ समय-समय पर मैं उसकी राह में कांटे बोता गया और वह बिना कोई शिकायत किए अपनी मंजिल की ओर बढ़ता गया और कामयाबी पाता गया. मैंने उसके साथ बुरा किया, लेकिन उसने हमेशा मुझसे दोस्ती निभाई और मेरे साथ अच्छा व्यवहार ही किया." 

राजेश अपनी आँखें खोलता  है तो यमराज उससे मुस्कुराकर पूछते है, "कहो जीव कोई उत्तर मिला?" 

राजेश उदास होकर कहता है, "हां."

"क्या उत्तर मिला?" यमराज उससे फिर से पूछते हैं.

राजेश अपना सिर झुकाकर जवाब देता है, "असल में मेरी नीयत में ही खोट था."

लघुकथाकार- संगीता सिंह तोमर 

4 comments:

  1. बहुत सार्थक लघु कथा...

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  2. शुक्रिया कैलाश शर्मा जी.

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  3. बढिया संदेश देती लघु कथा ..

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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