उन्मुक्तता
क्यों मिल गयी संतुष्टि
उन्मुक्त उड़ान भरने की
जो रौंध देते हो पग में
उसे रोते , कराहते
फिर भी मूर्त बन
सहन करना मज़बूरी है
क्या कोई सह पाता है
रौंदा जाना ???
वो हवा जो गिरा देती है
टहनियों से उन पत्तियों को
जो बिखर जाती हैं यहाँ वहाँ
और तुम्हारे द्वारा रौंधा जाना
स्वीकार नहीं उन्हें
तकलीफ होती है
क्या खुश होता है कोई
रौंधे जाने से ??
शायद नहीं
बस सहती हैं और
वो तल्लीनता तुम्हारी
ओह याद नहीं अब तुम्हें
भेदती है अब वो छुअन
जो कभी मदमुग्ध करती
तुम्हारी ऊब से खुद को निकालती
अब प्रतीक्षा - रत हैं वो
खुद को पहचाने जाने का
टूटकर भी
खुशहाल जीवन बिताने का
क्या जीने दोगे तुम उन्हें
उस छत के नीचे अधिकार से
उनके स्वाभिमान से
या रौंधते रहोगे हमेशा !!!
अपने अहंकार से
इस पुरुषवादी समाज में
आखिर कब मिल पायेगी
उन्हें उन्मुक्तता ???
रचनाकार: सुश्री दीप्ति शर्मा
आगरा, उत्तर प्रदेश
रौंधने वाला तो होताहै खुश !
ReplyDeleteAvinaash uncle .. sahi kaha aapne .. shukriya
Deleteshukriya veena ji
ReplyDeleteबहुत उम्दा अभिव्यक्ति ,,,,दीप्ती जी,,,
ReplyDeleteRecent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
dheerendra ji bahut shukriya
Deleteअरे वाह ! बहुत अच्छा है। :)
ReplyDeletevedika ji bahut bahut aabhar
Deleteरचना प्रभावी लगी, चिंता नहीं चिंतन करना आवश्यक है, तभी उद्देश्य सफल हो पाएगा।
ReplyDeleteMukesh ji bahut bahut aabhar
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeletebahut bahut shukriya Dilip ji
Delete
Deleteकविता तो ठीक बनी है किंतु मुक्ति का विचार असंगत लगता है ,हाँ असंगतता मे संगति की कोशिस
वहुत सबाल छोडे हैं
ReplyDeleteलिखने वाले ने लेकिन
मेरे खयाल से,
हम सव को
वदलना होगा
अपनी सोच को
अपनी नजर को
समझना होगा उसके
मन की भावनाओं को,
लेकिन अगर
मैं यह कहूँ तो
कुछ गलत न होगा
कयोंकि इक उमर से
देखता आ रहा हूँ
अपने आस पास
इस समाज में या
अपने परिवार में
एक पुरूष से जयादा
औरत को औरत ने
छलनी किया है,
कभी वंश चलाने के लिए
तो कभी ननहीं उमर में
कितावें छीनकर
घर के काम के नाम पर...
कालिदास
वहुत सबाल छोडे हैं
ReplyDeleteलिखने वाले ने लेकिन
मेरे खयाल से,
हम सव को
वदलना होगा
अपनी सोच को
अपनी नजर को
समझना होगा उसके
मन की भावनाओं को,
लेकिन अगर
मैं यह कहूँ तो
कुछ गलत न होगा
कयोंकि इक उमर से
देखता आ रहा हूँ
अपने आस पास
इस समाज में या
अपने परिवार में
एक पुरूष से जयादा
औरत को औरत ने
छलनी किया है,
कभी वंश चलाने के लिए
तो कभी ननहीं उमर में
कितावें छीनकर
घर के काम के नाम पर...
कालिदास
jo jajb huye jajbaat banen
ReplyDeletejo dhulak gaya wo paani hai
aanshoo bahana kamjori**jajbaat
banao jo banenge tumhaare houslo ki udaan
कविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है
ReplyDeleteमेरी नई रचना
खुशबू
प्रेमविरह
तमाम स्त्री की वेदना को शब्द... बहुत बढ़िया, बधाई.
ReplyDeletebahut bahut aabhar
DeleteKalidass ji ... Gope uncle ji ... dinesh ji ....
ReplyDeletebahut bahut aabhar
प्रभावी ओर शशक्त रचना ..
ReplyDeleteदिगम्बर जी बहुत बहुत शुक्रिया
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeletebahut bahut shukriya Yashoda Didi
ReplyDeletevry22222222222 nice deepti.........m really impressed
ReplyDeletethanks Himanshu
Deletebadiya
ReplyDeletebadhiya..
ReplyDeletebahut shukriya Vinod ji
Deleteअनुपम कृति ......
ReplyDeleteshukriya Bhupendra ji
Deletebahut shukriya Yashwant bhaiya
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी ख़बर.... मेरी शुभकामनाये दिल से
ReplyDeleteKirti didi ... bahut shukriya
Deleteवहुत वहुत खुशी हुई
ReplyDeleteअभी तो चलना सीखा है,
अभी तो दौडना वाकी है,
अभी तो कुछ परवत पार किये हैं,
अभी तो लांघना आसमान बाकी है......
बहुत सुंदर अंदाज से आपने एक एसा स्वाल किया है जिसका एक ही जबाब लगता है...आपकी कविता जागेगी .....!
ReplyDeletebahut bahut shukriya Sanjeev Kuralia ji
Deleteसफलता मेहनत, लगन से प्राप्त होती है , आपको बहुत बहुत बधाई !
Deleteshukriya Suresh Sharma ji
Deletesundar rachna
ReplyDeletebahut bahut aabhar
Deletebahut sundar kavita hai. shubh kamnayen
ReplyDeleteAnuj ji shukriya
Deletebahut sunder :)
ReplyDeleteManish ji shukriya
Deleteबहुत अच्छी रचना.....
ReplyDeleteबधाई दीप्ति!!
शुभकामनाएं..
अनु
bahut shukriya Anu ji
Deleteits an outstanding efforts by Deepti.
ReplyDeleteshukriya Vijay ji
Deletemarmik
ReplyDeleteshukriya Arun ji
Deletewah deepti, shaandaar rachna
ReplyDeleteShukriya Anil ji
Delete.....दीप्ती जी.... बेहतरीन .......
ReplyDeleteआप भी पधारो स्वागत है ...
pankajkrsah.blogspot.com
ji jarur
Deleteshukriya Pankaj ji
बहुत २ बधाई ....दीप्ति जी
ReplyDeletebahut bahut shukriya
Deleteati utkristh rachna hetu dhero badhai swikar kare ..kirti jee ....
ReplyDeleteshukriya neelu ji
Deletebahut achhi kavita .samay ke sach ko rekhankit karti .badhai Deepti !
ReplyDeleteshukriya Brajesh ji
Deleteshukriya dinesh ji
ReplyDeleteस्त्री जीवन के कठोर सच...। कि रौंदे गए हैं जो...वे सदा को हारे नहीं हैं....
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..मन के भाव बताती एक अच्छी कविता.
ReplyDeletebahut bahut shukriya
Deleteबहुत सुंदर रचना ,
ReplyDeleteआकर्षक एवं प्रभावी कविता और शब्दों का शानदार प्रयोग ।
ऐसी ही कविता हम तक पहुंचाते रहिए दीप्ति जी ।
आपका बहुत बहुत धन्यवाद बेहतरीन रचना के लिए
bahut sundar rachna. bhaavaabhivyakti bahut sundar wah...
ReplyDeleteअच्छी रचना है... मुझे ख़ुशी हुई जानकर ...और आपको हार्दिक बदाई भी ............... खुदा करे आप ऐसी हजारो मंजिलो को छुए ........ :)
ReplyDeleteअच्छी कविता है। इतने सारे कमेंट्स मेरी बात की पुष्टि करते हैं।
ReplyDeletebahut bahut shukriya
Deleteपहले तो बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये ....रचना वास्तव में उत्तम है !
ReplyDeleteSunder abhivyakti.
ReplyDeletebahut khoob ......uttam rachana ke liye dher sari badhai....
ReplyDeleteनारी सब कुछ निछावर कर सिर्फ बदले में प्यार...सम्मान ...और एक पहचान चाहती है ...और क्या नहीं देती सबको ...पुरुषको, उसके बदले में ....क्या यह बहुत बड़ी कीमत है ...और फिर भी उसे सिर्फ एक पहचान ..अपने स्वाभिमान के लिए इतना गिडगिडाना पड़े ....इतना अधम...कहाँ ले जायेगा ऐसे समाज को ....एक ज्वलंत प्रश्न...जिसका उत्तर, क्या है पुरुष प्रधान समाज के पास ....
ReplyDeletebahut achhe...deepti g...
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteबहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteBadhiya ji..
ReplyDeletebehad umda rachna
ReplyDeleteHamesha Ki Tarah Lajawab Deepti
ReplyDeleteस्त्री मन की सच्ची अभिव्यक्ति.
ReplyDeletebahut badhai Deepti ji, badhia kavita
ReplyDeletehamesh ki tarah a kavita bi outstanding hai... jo batati hai apne samaj me naitik shiksha or moolyo ka patan ho gaya hai... god bless INDIA!
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