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Tuesday, February 19, 2013

शोभना काव्य सृजन पुरस्कार प्रविष्टि संख्या - 29

विडम्बना

 कितनी 
विडम्बना है 
मेरे देश में 
नर व मादा के 
पैदा होने पर 
एक ही परिवार 
की सोच में 
कितने मतभेद हैं 
घर में मातम है 
कि 
इस बार भी 
बहू के लड़की हो गई 
और
गाय ने भी
बछड़ा दे दिया 
सबकी चाहत भी 
कि
 बहू के लड़का हो 
और 
गाय दे बछिया हमें 
वे समझते हैं 
बेटी धन पराय का 
और बछिया वंश गाय का

रचनाकार - श्री इरफ़ान 'राही'

 
बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश 

1 comment:

  1. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.हहमारा समाज कबतक बेटियों को पराया मानता रहेगा.

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