नई दिल्ली: विगत दिवस बसंत पंचमी को अवधेश सिंह के कविता संग्रह "छूना बस मन" का लोकार्पण नयी दिल्ली के साहित्य अकादिमी के रवीन्द्र भवन , मंडी हाउस में संपन्न हुआ .
" संग्रह में प्रेम के माधुर्य को विशेष गरिमा प्रदान की है कवि की प्रेम के प्रति गहरी अनुभूति "अभिव्यक्ति" को उद्दात रूप प्रदान करती है यहाँ प्रेम अपनी कलात्मक और कोमल स्वरुप में प्रतिबिंबित होता है" उक्त कथन अवधेश सिंह के कविता संग्रह "छूना बस मन" के लोकार्पण पर कार्यक्रम अध् यक्ष विश्व में ख्याति प्राप्त वरिष्ठ कवि गीत व गजलकार व साहित्यकार श्री कुँअर बेचैन ने व्यक्त किया .
कुँअर बेचैन ने संग्रह की पहली कविता "प्यार में कुछ तो होता है खास ..." को प्रेम के दस व्यापक बिन्दुओं पर सीधी अभियक्ति माना, और स्पष्ट किया की प्रिय की सुंदरता को कवि ने यह कह कर की "तुम्हे देख लगा / गजलों की मैंने देखी / पहली रूमानी किताब ." पर कवि ने सोंदर्य वर्णन की पराकाष्ठा को छुआ है . इस संग्रह "छूना बस मन" में अवधेश सिंह प्रेम के संदर्भ में "मन" की सत्ता को ही सर्वोच्च मानते हैं "उद्धव मन न भये दस बीस " में मन के तमाम रूपों के अस्तित्व के दर्शन हैं जिससे यह संग्रह पठनीय और प्रेम की सात्विक गहन अनुभूतियों का प्रतिमान बनता है ."
इस अवसर पर विशेष रूप से श्री कुँअर बेचैन ने शाल से संग्रह "छूना बस मन" के लेखक अवधेश सिंह को विशिष्ट सम्मान देकर संग्रह को नयी गरिमा प्रदान की .
प्रख्यात साहित्यकार कवि दिविक रमेश ने संग्रह की भूमिका में इस संकलन को दुर्लभ होते प्रेम को सम्भव करते हुए पाया, दिविक ने स्पष्ट किया की संग्रह की कविताओं की ताकत उनके सीधे-स च्चेपन में हॆं। न ये कृत्रिम हैं ऒर न ही सजावटी। ये इतनी पकी भी नहीं हे कि उनमे से कच्चेपन की एकदम ताजा खुशबू गायब हो। प्यार की मासूमियत ऒर ललक यहां बरबर हिलोरे लेती हॆ जिसमें कवि की आस्था एक ऎसे प्यार में हॆ जो किसी भी स्थिति में शिकायत के दायरे मे नहीं आता । इस भयावह, क्रूर ऒर अत्यधिक उ ठा-पटक वाले राजनीतिक परिवेश मे ं अवधेश सिंह ने अपनी कविताओं में प्रेम को बचाना सम्भव किया है ।दिविक ने संग्रह को प्रेम के साहित्यक इतिहास के वर्त्तमान दौर के बारे में कहा की ऎसा नहीं कि समकालीन कवियों में कविता में प्रेम बचाने की चिंता एकदम गायब हो। अशोक वाजपेयी तो इसके लिए लगातार पॆरवी भी करते रहते हॆं। कुछ वर्षों पहले कवि अजित कुमार ने अच्छी प्रेम कवित ाएं दी थीं। लेकिन कोई युवा कवी आज के माहॊल में अपने पहला संग्रह प्रेम कविताओं का लेकर आए तो यह पहली प्रतिक्रिया हो सकती है की क्या कवि आज के जलते हुए परिवेश से परिचित होने के बावजूद भी प्रेम की खोज को ही अपनी राह बनाना चाहता हॆ।
लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेश क भारत संचार निगम लिमिटेड श्री राकेश कुमार उपाध्याय ने हिंदी साहित्य के प्रति उनकी व्यक्तिगत अभिरुचियों को व्यक्त किया और उसके सर्वांगीड़ विकास पर बल दिया ,
कवि व साहित्यकार आलोचक डॉ वरुण कुमार तिवारी ने संग्रह को आज के दिखावा संस्कृति पर एक साहित्यक कटाक्छ बताया ,उन्होंने कहा की प्रेम विषय पर विदेशी सोच का विपरीत असर भारतीय युवाओं पर पड़ रहा है , स्वछंदता व खुला पन भारतीय संसकृति का प्रेम नहीं है ,डॉ तिवारी ने लेबनान व अमेरिकन साहित्यकार खलील जिब्रान की रचनाओं को इस आलोचना मे सन्दर्भ के रूप में लिया और उनकी रचनाओं में निहित पीढ़ियों के निरंतर जीवन में प्रेम तथा इसकी सहभागिता के नये अर्थ की ब्याखा करते हुए संग्रह को साहस पूर्ण अभिव्यक्ति कहा । डॉ तिवारी ने कवि की अनुभूतियों को गहराई से युक्त पाया और संग्रह की कविताओं में प्यार में कुछ तो होता है खास की पंक्तियों "फूलों की डालियाँ / जमीं तक झुक आती हैं / कदम सीधे नहीं पड़ते / दहलीजें मुस्करातीं हैं / मन उड़ हो जाता है आकाश ...../ ................प्यार में / ................कुछ तो होता है खास " को इसका एक उदाहरण कहा . आलोचक ने दूधिया बल्ब से सपने व छूना बस मन शीर्षक की कविताओं को संग्रह की श्रेष्ठ रचना कहा .
प्रसिद्ध साहित्यक पत्रिका हंस व प्रमुख हिंदी समाचार पत्र दैनिक जागरण के ख्याति प्राप्त स्तम्भ कार दिनेश कुमार ने बड़ी साहित्यक आलोचनाओं को सिरे से नकारते हुए अपने संछिप्त वक्तव्य में प्रेम कविताओं के इस संग्रह को वैलेंटाइन के माध्यम से हो रहे दिखावे वाले प्रेम के व्यापारिक करण को ख़ारिज करने वाला "वास्तविक प्रेम भाव" की पूरक रचनाओं का संग्रह कहा . दिनेश कुमार जायसी में प्रेम रचनाओ का सन्दर्भ लिया और कहा की संग्रह की कविताओं का भाव तथ्य पूर्ण , संवेदनशील व मन को छूने वाला है जहाँ प्रेम समाज के व्यापक द्रष्टि कोण का समर्थन करता अभिव्यक्त हुआ है . संग्रह की कविता "प्रेम ख़त " में समाज का हस्तछेप दीखता है यह कविता संग्रह की प्रति निध कविता है . संग्रह प्रेम के समक्छ खड़ी साहित्यक हिंदी नेट मीडिया प्रवासी दुनिया के प्रमुख व व्यंग कार कवि अनिल जोशी ने धनानंद और तुलसी दास की रचनाओं में प्रेम की नैसर्गिकता व व्यापकता को उदाहरण में रखते हुए प्रेम में निहित भक्ति और अद्ध्यात्म को वास्तविक व सुखकर प्रेम कहा और मन के विभिन्न रूपों की ब्याक्खा करती संग्रह की बड़ी कविता "उद्धव मन न भये दस बीस " को इस भाव का उदाहरण बताया . अनिल जोशी ने वजन देते हुए कहा की संग्रह की अनुमति प्रेम के विषय में बस "छूना बस मन" की ही है
प्रारंभ में आगंतुको का स्वागत संग्रह के प्रकाशक "विजया बुक्स " व आयोजक गणों की ओर से पुष्प गुच्छ द्वारा एडवोकेट संतोष कुमार मिश्र, शोभित सिंह , पूनम माटिया , मनीष सिंह ने किया , कार्यक्रम का सफल संचालन कवियत्री सुश्री पूनम माटिया ने निभाया तथा कार्यक्रम संयोजन में योगेश शर्मा , राजीव शर्मा , सरोज शर्मा, एस के त्रिपाठी व् सत्या त्रिपाठी , मनोज सिन्हा ने अपना योग दान किया .
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुतीकरण.
ReplyDeletebadhai .
ReplyDeleteआँखों आँखों में जो हो जाए
ReplyDeleteवही तो खास मुलाक़ात होती है
बस मन को जो छू जाए
वही बात तो बस बात होती है ......पूनम
अवधेश सिंह जी के पुस्तक लोकार्पण का कार्यक्रम संचालित करना बेहतरीन अनुभव रहा और खुद को गौरान्वित महसूस किया श्री दिविक रमेश जी द्वारा लिखित शब्दों का वाचन करके .. विशेष तोर पे आदरणीय कुंवर बैचैन जी और डाक्टर तिवारी जी की उपस्तिथि एवं शब्द आनंददायक थे .........
अवधेश जी को प्रेम काव्य संकलन प्रकाशित होने पर पुन:बधाई