महेश का बार - बार रीमा
को केबिन मे बुलाना ऑफिस के सारे स्टाफ मे चर्चा का विषय बन गया। लगता था जैसे वो कुछ काम
नहीं करते सिर्फ कलम चलती हुई दिखाई देती है। उनके चेहरे की मुस्कराहट तो कुछ और ही
बताती थी| पैतीस
लोगो का स्टाफ था। जैसे
ही रीमा महेश के केबिन से बाहर आती उनमे बात-चीत और हँसना चालू हो जाता। रीमा ये
सब जानती थी पर नजर अंदाज कर देती और फिर अगले दिन वापस वो ही चालू। पर कोई भी बात कितने दिन
तक छुप सकती है। महेश की पत्नी सुधा को ये सब पता चला तो
सब से पहले उसे अपनी बेटी कृष्णा का ख्याल आया, कि अगर उसे पता चला, कि उसके पापा
पैंतालिस साल की उम्र में 27 साल की लड़की के साथ इश्क फरमा रहे हैं, तो उस को कितना बुरा
लगेगा। उसकी
नजरो में पापा की क्या इज्ज़त रह जाएगी। उसी ऑफिस मे काम करने वाली लता को सुधा ने अपने घर बुलवाया और और
कहा कि वो रीमा को कैसे भी करके ग्रैंड होटल में ले कर आये। आखिर तीन दिन बाद लता रीमा को
ग्रैंड होटल लाने में कामयाब हुई। सुधा वहाँ पहले से ही मौजूद थी। रीमा का सुधा से परिचय
करा कर लता चली गयी। रीमा
सुधा से मिलकर डर गयी, पर
सुधा ने जब रीमा को देखा तो उसे बहुत दुख हुआ। वह बहुत छोटी थी। सुधा को वह अपनी बेटी कृष्णा जैसी दिखी।
सुधा को महेश पर बहुत
गुस्सा आया। वह इस बात पर मन ही
मन खीज उठी, कि कैसा
इंसान है पुत्री समान लड़की पर बुरी नजर रखता है। सुधा ने रीमा से पूछा, ''ऐसी
क्या मज़बूरी है तुम्हारी जो तुम्हें अपने से बड़ी उम्र के आदमी के साथ ये प्यार का
नाटक करना पड़ा?" रीमा
ने बताया, ''मैडम मेरे पापा को अचानक दिल
का दौरा पड़ने से मौत हो गयी। मुझे दो
छोटे भाइयों को पढ़ाना और घर चलाना पड़ता है। महेश सर मुझे अपने करीब बैठे रहने के पैसे दे देते हैं। मैं उनके साथ
बैठ कर थोड़ा बहुत हँस-बोल लेती हूँ। मुझे माफ़ कर दीजिये। अब ऐसा नहीं करुँगी।
ये सब
सुन कर सुधा को दुःख हुआ, कि महेश कैसे किसी की मज़बूरी का फ़ायदा उठा रहा है। इतनी उम्र के आदमी के भीतर इंसानियत नाम की कोई चीज़ ही नहीं है। उसने रीमा के सिर पर हाथ रखा और कहा, कि घबराओ मत मैं तुम्हारे
साथ हूँ। सुधा
का अपनत्व भरा हाथ अपने सिर पर पाकर रीमा रोने लगी। वह खुद भी इन हालातों से बाहर निकलना चाहती
थी पर मज़बूरी क्या नहीं करवाती है इंसान से।
सुधा
ने उससे कहा, ''रीमा
तुम ये नौकरी छोड़ दो। मैं तुम्हें अपने भाई के ऑफिस में कल ही नौकरी दिला देती हूँ और ऊपर की कमाई के पैसे मैं तुम्हें दूंगी। तुम मेरी बेटी को इंग्लिश पढ़ा देना। सुधा ने कहे मुताबिक रीमा को अपने भाई के ऑफिस में नौकरी दिलवा दी। अगले ही दिन उसने वो नौकरी छोड़ दी। महेश ने बहुत कोशिश की, कि
रीमा नौकरी न छोड़े,लेकिन रीमा नहीं मानी। रात को
महेश घर आया तो सुधा से कहा, ''मेरे
ऑफिस की एक बहुत मेहनती लड़की काम छोड़ कर चली गयी।"
सुधा ने कहा, ''वह गयी नहीं मैंने ही उसे
जाने को कहा।" महेश
एकदम चुप हो गया। उसे
लगा कि सुधा ने उसकी चोरी पकड ली है। इस प्रकार सुधा ने अपनी सूझ -बुझ से एक मजबूर लड़की
को सहारा देकर उसकी जिन्दगी बर्बाद होने से बचायी। अपना घर उजड़ने से बचाया और साथ ही अपनी बेटी की नज़रों में पिता
की इज्ज़त को भी बरकरार रहने दिया। अब सब ठीक है सुधा ने लता का धन्यवाद किया, की यदि उसने
साथ नहीं होता, तो ये सब होना संभव न होता।
रचनाकार: श्रीमति शांति पुरोहित
बीकानेर, राजस्थान
सर,बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteसूझ बूझ से हर समस्या का हल निकल आता है।
ReplyDeleteवंदना गुप्ता जी आपका बहुत शुक्रिया आगे भी उत्साह वर्धन करते रहना
Deleteक्या बात हे शांति बहुत अछी कहानी लिखी हे पत्नी की सूझ बूझ से एक लड़की का जीवन बर्बाद होने से बच गया और गेर्हस्थी भी ,इज्जत बनी रह गई
ReplyDeleteगीता दीदी आपका बहुत शुक्रिया
Deleteआपका बहुत शुक्रिया मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है
ReplyDeleteशशि मैडम जी बहुत धन्यवाद आपका
ReplyDeleteजानकर बहुत ख़ुशी हो रही है
आभार
शांति जी ...कहानी सार्थक रूप से बहुत अच्छी है
ReplyDeleteपर मैं इस दुनिया के लोग इतने अच्छे नहीं है ...जितने आपने इस कहानी के पात्र में लिखे हैं
कुछ अधूरापन सा लग रहा है ????
हाँ,अंजू जी ये मुझे पता आपकी बात एक दम सही है,पर हम लिखने वालो का ही काम है कि इस प्रकार का संदेश दे, कि कुछ बदलाव आ सके
ReplyDeleteसादर
bhaut sundar kahani ......
ReplyDeleteअमर भारती जी बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteवाह...!!!
ReplyDeleteधन्यवाद सर,
ReplyDeleteइस सुन्दर और सार्थक कहानी के लिए बधाई शान्ती जी
ReplyDeleteध्यन्यवाद मीना जी
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