कल शहर में रेवडियाँ बाँटी गयीं थीं. रेवडियाँ
बाँटने के लिए एक भव्य समारोह का आयोजन किया था. समारोह के आयोजक ऐसा समारोह हर
साल करते हैं और अपने चाहने वालों के लिए नियम से रेवडियाँ बाँटते हैं. रेवडियाँ
प्राप्त करने की कोई विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती. बस आपको रेवड़ी बाँटू
कार्यक्रम में उपस्थित होना आवश्यक है. हाँ यदि आप अधिक व्यस्त हैं और कार्यक्रम
में आने का कष्ट नहीं उठाना चाहते, तो आपके निवेदन पर रेवडियाँ आपके घर पर भी
पहुंचाईं जा सकती हैं. यदि आपकी जान-पहचान न भी हो तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता. आप
रेवड़ियों के दाम चुकाने की हिम्मत रखें, तो रेवडियाँ रेवड़ी देने वाले के साथ खुद
ही आपके दरवाजे पर मुस्कुराते हुए मिलेगीं. कार्यक्रम में रेवडियाँ देनेवाले अथवा
लेनेवाले में कतई भेद नहीं करतीं. ये सबसे ही बराबर व्यवहार करती हैं और सबकी झोली
में हँसी-खुशी से पहुँचना पसंद करती हैं. इन दिनों देश-विदेश में ऐसे रेवड़ी बाँटू आयोजन जमकर हो रहे
हैं. कहते हैं कि इनसे आपसी सदभाव बढ़ता है. इन आयोजनों में आयोजक बहुत सतर्कता से
काम लेते हैं, कि कहीं कार्यक्रम में उपस्थित कोई आमंत्रित बिना रेवड़ी के न रह
जाए. यदि एक व्यक्ति भी रेवड़ी लिए बिना रह गया, तो जीवन भर की बुराई हो जाने का
खतरा हो सकता है. लोग भी रेवडियाँ पाने के लिए सारे तिकड़म आजमाते हैं, इधर-उधर से
जुगाड़ बैठाते हैं, कि किसी न किसी तरह रेवड़ी मिल जाए. रेवड़ी देनेवाले के प्रति
रेवड़ी पानेवाले के प्रति सदैव अहसानमंद रहते हैं और कभी न कभी रेवड़ी के कर्ज़ को
उतार ही देते हैं. देश की कई संस्थाएँ रेवड़ी बाँटने में कर्मठता से जुटी हुईं हैं.
किसी की रेवड़ी मँहगी हैं, तो किसी की सस्ती, किंतु एक बात पक्की है कि रेवड़ी
बाँटने का अच्छा फल अवश्य मिलता है. आजकल जिसके पास जितनी रेवडियाँ होती हैं, वह
उतना ही प्रतिष्ठित माना जाता है. प्रतिष्ठित होने के लिए यह आवश्यक नहीं, कि किसमें कितनी प्रतिभा है. आजकल प्रतिभा का आधार
है रेवड़ियों की उपलब्ध संख्या. रेवड़ियों को धारण करने वाला अपने हर जाननेवाले को
अपनी रेवडियाँ दिखा-दिखा अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करता है. उसकी रेवड़ियों से
आकर्षित होकर उसका परिचित भी रेवडियाँ पाने के सपने देखने लगता है. इसके लिए वह
अपने भीतर प्रतिभा नाम के जीवाणु को उत्पन्न करने का प्रयास करता है, किंतु उस
मूर्ख को यह ज्ञान नहीं होता, कि रेवडियाँ पाने
के लिए एक विशेष प्रकार की प्रतिभा की आवश्यकता होती है, जो कुछ जीव अपने साथ लेकर
इस धरा पर प्रकट होते हैं. ऐसे जीव जैसे-जैसे बड़े होते हैं, इनकी विशेष प्रतिभा
अति विशेष होती जाती है और जो भी जीव इनके संरक्षण में रहता है, इनकी विशेष
प्रतिभा का थोड़ा-बहुत अंश उसे भी प्राप्त हो जाता है. इस प्रकार वह भी कुछ
रेवडियाँ पाने का सौभाग्य प्राप्त कर लेता है. अगले कुछ दिनों में एक महोदय रेवड़ी
बाँटने वाले हैं, उन्होंने मुझमें रेवड़ी पाने की तथाकथित विशेष प्रतिभा का अभाव
होते हुए भी रेवड़ी देने के लिए आमंत्रित किया है. सोच रहा हूँ, कि कार्यक्रम में
जाना लाभदायक रहेगा. हालाँकि अपने को रेवड़ी प्राप्त करने का चाव नहीं है, किंतु इस
बहाने कम से कम रेवड़ी लेने के सिद्धहस्त विशिष्ट श्रेणी के जीवों के दर्शन का
सौभाग्य तो मिल ही जाएगा. हाँ यदि आप भी रेवड़ी पाने के इच्छुक हैं, तो शीघ्र ही
आयोजक से संपर्क साधें. वे पिछले कई दिनों से चिल्ला रहे हैं, “रेवडियाँ ले लो
रेवडियाँ”.
रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली
्करारा व्यंग्य है सुमित वैसे रेवडियाँ बाँटने वाले आजकल ये भी शर्त सामने रखने लगे हैं कि आपका कार्यक्रम मे उपस्थित होना जरूरी है यदि नही हो सकते तो हम रेवडियाँ नहीं दे सकते ………अजब दादागिरी का ज़माना है ज़रा संभलकर चलना :) ………
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना जी. यदि रेवडियाँ देने के लिए आयोजक कार्यक्रम में उपस्थित होने की शर्त रख दे तो असल में वह रेवड़ी नहीं गुड़ की पट्टी दे रहा होता है, जिसे दुर्भाग्य से लेने वाला रेवड़ी ही समझता है, क्योंकि असल में वह रेवड़ी लेने का आदी होता है और कभी-कभार गलती से उसके भाग्य में गुड़ की पट्टी आ रही होती है, तो उसे भी वह मूर्ख रेवड़ी ही समझता है. क्या कीजिएगा? :)
Deleteसुमित जानते सब हैं मगर ये रेवडियों का लालच बहुत बुरा होता है …………जीवट ही इससे बच पाते हैं :)
Deleteआपने मेरी बात को जाना और समझा इसके लिए आपका आभार :)
Deleteआज की ब्लॉग बुलेटिन गुम होती नैतिक शिक्षा.... ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteशुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन...
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के "रेवडियाँ ले लो रेवडियाँ" (चर्चा मंच-1230) पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया शास्त्री जी...
Delete:)Interesting!
ReplyDeleteFir to blogworld mei Aane wale dino mei khuub halchal rahegi.
अल्पना जी देखेंगे कि आगे क्या होता है ब्लॉग जगत में...
Deleteअच्छा व्यंग किया है आपने
ReplyDeleteशुक्रिया तिवारी जी...
Deleteसच में रेवड़ी बंट रही है, संपर्क साधो रेवड़ी पा लो. ऐसा देख कर कई बार मन आहत भी हो जाता है. साहित्य हो या कोई भी क्षेत्र बस यही हो रहा. बहुत तीखा व्यंग्य, शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteशुक्रिया जेन्नी शबनम जी...
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