चीन की औकात नहीं
जो हमसे यूँ टकरा जाए
कोई भेदी घर का है
पहले उसको ढूंढा जाए
ख़ामोशी भी गद्दारी है
जब निर्णय लेने में देरी हो
सेना को अधिकार सौंप दो
पेइचिंग तक दौडाया जाए
सोच रहा जो रण क्षेत्र में
सन 62 को दोहराने की
समय आ गया आज बता दो
तिब्बत भी लौटाया जाए
देश के ऊपर संकट हो
कोई कुर्सी की बात करे
सत्ता के जोंकों को भी
आज सबक सिखाया जाए
आँख उठे जो मुल्क पर
आँख निकाल बाहर करो
व्यापार पर रोक लगाओ
उसको घर पहुँचाया जाए ।
रचनाकार- श्री ए. कीर्तिवर्धन
मुजफ्फर नगर, उत्तर प्रदेश
वीर रस से भरी सुन्दर कविता !!
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