जीवन के हर मोड़ पर, काँटों लड़े करील।
आँखों में तरती रहें, यादें मोती झील।
आद्य गीत आँसू लिखे।।
ज्ञान किताबों में भरा, हरियाली में अन्न।
फिर भी अपना देश यह, नहीं हुआ संपन्न।
कारण जीवन का पतन।।
अथक प्रगति की दौड़ में, आदम भरे कुलाच।
फिर भी बिखरे आज तक, कोलाहल के काँच।
प्रतिहति पर होनी विजय।।
सागर में लेकर चला, नाविक तो बस नाव।
उसने देखे हैं कहाँ, तन पर उभरे घाव।
रोटी की चिंता पड़ी।।
मूक दमा है मुकदमा, पैरोकार पुकार।
लेना-देना पेशकश, पेशकार का कार।
तारीखनामा कचहरी।।
छितराये आकाश में, हैं बादल घनघोर।
थिरक रही है मोरनी, कहाँ छिपे चितचोर।
मधुवन पड़ा है सूना।।
शिवानन्द सिंह "सहयोगी"
संपर्क- "शिवभा" ए- 233, गंगा नगर,
मवाना मार्ग, मेरठ, उत्तर प्रदेश।
दूरभाष- 0941221225
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