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Friday, July 12, 2013

व्यंग्य: नियम


“कल्लू भैया राम-राम!”
“राम-राम लल्लू भैया!”
“अरे भैया ऐसे मरे-मरे क्यों बोल रहे हो? कोई परेशानी है क्या?”
“अब क्या बताएँ? नए यम से दुखी हो गये हैं.”
“नए यम से? हम समझे नहीं. ज़रा खुलके बताओ.”
“भैया हम नए यम यानि कि नए नियम से परेशान हैं.”
“क्या कल्लू भैया आप भी न. नियम को यम बना दिया.”
“बताया नहीं बताना पड़ा. नियम यम सा ही जान पड़ रहा है.”
“ऐसा कौन सा नियम है?”
“ससुरी नई नंबर प्लेट को लगावाने का नियम आया था.”
“तो फिर नई नंबर प्लेट लगवाई?”
“लगवाई? अरे भैया लगवानी पड़ी. मति मारी गई है, जो सरकारी आदेश को न मानें.”
“फिर परेशानी क्या हुई?”
“ये पूछो क्या-क्या परेशानी नहीं हुई?”
“अब भैया पहेली मत बुझाओ. साफ़-साफ़ बताओ क्या हुआ?”
“आज बिना बोनी किए ही अपना ऑटो लेकर अथोरिटी की ओर चले गए.”
“वो काहे को?”
“अरे नंबर प्लेट चेंज करवाने और काहे को.”
“अच्छा फिर.”
“फिर क्या दोपहर तक अथोरिटी वालों ने फुटबाल बनाकर रखा. कभी कोई इस ओर लात मारकर उछाल देता तो कोई उस ओर.”
“तब तो भैया आज तुम्हारी सारी हवा निकाल दी होगी.”
“अरे भैया मत पूछो. हवा-पानी सब निकाल दिया.”
“ज्यादा भीड़ थी क्या?”
“भीड़ इतनी थी कि बताने के लायक नहीं.”
“फिर कैसे काम बना?”
“जुगाड़ लगाना पड़ा और कोई उपाय ही नहीं बचा था.”
“कोई अफसर जानकर मिल गया था क्या?”
“अरे अफसर भी किसी के हुए हैं भला?”
“तो फिर किससे जुगाड़ लगवाया?”
“जब सारे जुगाड़ फेल हो जाएँ, तो एक जुगाड़ काम करता है और वो जुगाड़ कभी फेल नहीं होता.”
“ऐसा भला कौन सा जुगाड़ है?”
“बाप-बड़ा न भैया सबसे बड़ा रुपैया. रूपया सभी जुगाड़ों का बाप है.”
“वाह कल्लू भैया मान गये आपको.”
“दुनिया मानती है तुम अब जाकर माने. चलो देर आए दुरुस्त आए.”
“वैसे कल्लू भैया आप बिना रुपयों के भी यह काम करवा सकते थे.”
“बिना रुपयों के ख़ाक करवा लेते. हमारे पैरों में तुम्हारे पैरों जितना दम नहीं है, जो पूरे दिन लाइन में खड़े हो लें.”
“कितनी जेब ढीली करनी पड़ी?”
“ढीली करनी पड़ी. ये बोलो कि जेब में छेद ही हो गया.”
“सो कितना रुपया लग गया?”
“पूरे दिन की दिहाड़ी चली गई. सात गुना पैसा डकार गये ससुरे.”
“अथोरिटी के अफसरों ने पैसा लिया?”
“वो अपने हाथ से थोड़े ही ये पावन कार्य करते हैं. अपने दलाल रुपी चेले छोड़ रखे अपने आजू-बाजू.”
“इस नंबर प्लेट की खासियत क्या है?”
“हमें तो कुछ नहीं लगी. वो कहते हैं, कि इसके नंबर नहीं मिटेंगे और इसमें लगी चिप ऑटो के बारे में पूरी जानकारी रखेगी.”
“मतलब कि आपके ऑटो और आप पर नज़र रखेगी?”
“हाँ कुछ भी समझ लो. ये सरकार देश के दुश्मनों पर नज़र रख नहीं पाती, तो हम पर नज़र रखकर अपनी खुन्नस निकालेगी.”
“इसके पीछे भी सरकार का कुछ न कुछ उद्देश्य होगा?”
“उद्देश्य क्या होगा? नए-नए नियम लाओ. कमीशन खाओ और जीवन के मजे उड़ाओ.”
“लगता है आज आप बहुत परेशान हो गये हैं. इससे अच्छा तो आप नंबर प्लेट किसी और दिन बदलवा लेते.”
“किसी और दिन बदलवा लेते. रोड पर घूमते शिकारियों से तुम्हारे चचा बचाते.”
“अब ये रोड के शिकारी कौन हैं.”
“तुम्हारे बाप ने तुम्हारा सही नाम रखा है लल्लू. नाम और अकल दोनों से ही लल्लू हो. रोड के शिकारी यानि ट्रेफिक पुलिस वाले.”
“कल्लू भैया वैसे शिकारी तो आप भी हैं.”
“वो कैसे?”
“आपके ऑटो में जो सवारी यात्रा करती हैं उनका निर्ममता से आप औने-पौने दामों से शिकार नहीं करते हैं और जब रात-बिरात का समय होता है तब तुम बिल्कुल कसाई ही नहीं बन जाते हो. ”
“अरे लल्लू भैया तनिक धीमे बोलो. दीवारों के भी कान होते हैं. अब छोड़ो भी आज जो हुआ सो हुआ. चलो एक-एक पैग बना लेते हैं.”
“जैसी आपकी इच्छा. वैसे कल की क्या योजना है?”
“कल से करेंगे एक और यम यानि कि नियम का इंतज़ार.”
“हा हा हा चलिए देखते हैं ये नया नियम उर्फ यम आपको कितनी आफत देता है?”

सुमित प्रताप सिंह 

चित्र गूगल से साभार 

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!