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Tuesday, February 26, 2013

शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 10

ढलता हुआ सूरज और उम्र

ढलते सूरज की चमक
बहुत ही मोहती है दिल को
न इसकी तब चमक से
बंद होती हैं आँखे
और न ही इस की गर्मी में
झुलझने का एहसास होता है
और भी अपनी सिंदूरी लालिमा से
यह दिल को लुभा लेता है
ठीक वैसे ही जैसे
ढलती उम्र का तेज
बढ़ा देता है तेज सोम्य चेहरे का
और मोहता है दिल को बहुत करीब से
ठीक ढलते सूरज सा
अपनी बाहों में समेटता
दुलारता यह सूरज डूबता हुआ
उम्र के अंत सा
कितना अपना सा लगता है
टूटते हुए को जोड़ता हुआ
और अपनी गहराई विशालता में
समेटता हुआ
ढलता हुआ सूरज उम्र का, उम्र सा।

रचनाकार: सुश्री रंजना भाटिया




लाजपत नगर, नई दिल्ली 

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर......
    शुभकामनाएँ रंजना.

    अनु

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  2. umra ki garima aur tajurbe se bhari gahan rachna ....

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