आज सुबह से
हर तरफ़, हुआ अजब है शोर
पकड़ो, दौड़ो, रंग दो; आवाज़ें हर ओर ।
गली-गली में
रंग का, बरस रहा है मेघ
पिचकारी की धार का, बढ़ाते हुआ
है वेग ।
रंग घुला
चहुँ ओर अब, उड़ा गुलाल , अबीर
पिचकारी से रंग के, छूट रहे हैं
तीर ।
होली पर
इतना रखें, सभी मनुज बस ध्यान,
यूँ बैरंग न हो कभी, रंगों में
इंसान ।
द्वेष, अदावत, रंज़िशें; होली में दे फूँक
जा सबके लग
जा गले, मत बैठा रह मूक ।
इक जीवन में
रंग भर, इक जीवन में प्रान
होली का
मतलब यही, ये होली का ज्ञान ।
Shukriya SUMIT ji..
ReplyDelete@ANKIT Gupta 'ANK '
बहुत उम्दा प्रेरक दोहे,,
ReplyDeleteहोली का पर्व आपको शुभ और मंगलमय हो!
Recent post : होली में.
धन्यवाद पूज्य अग्रज!!!
ReplyDelete@अंकित गुप्ता 'अंक'
ब्लॉग बुलेटिन की पूरी टीम की ओर से आप सब को सपरिवार होली ही हार्दिक शुभकामनाएँ !
ReplyDeleteआज की ब्लॉग बुलेटिन हैप्पी होली - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
होली की बहुत-बहुत शुभकामनायें+आशीर्वाद और
ReplyDeleteरंग-गुलाल संग नहीं भंग !!
happy holi...आपको रंगों के पावन पर्व होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर प्रेरक दोहे,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।। होली की हार्दिक शुभकामनाएं
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
बहुत सुन्दर दोहे ,उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeletelatest post हिन्दू आराध्यों की आलोचना
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आप सभी का य़े नाचीज़ दिल से आभारी है ।
ReplyDeleteहालाँकि, यहाँ प्रकाशित करते समय कुछ शाब्दों की वर्तनी विकृत हो गई है यथा—
पहली पंक्ति में 'हर तरफ़', चौथी पंक्ति में 'रंग का ', पाँचवीं पंक्ति में 'बढ़ा हुआ ', सातवीं पंक्ति में 'ओर अब'
, दसवीं पंक्ति में 'इतना रखें ', चौदहवीं पंक्ति में 'लग जा गले',
सोलहवीं पंक्ति में 'रंग भर' और अठारहवीं पंक्ति में ' मतलब यही ' पढ़ने का कष्ट करें ।
— आपका
अंकित गुप्ता 'अंक'