विषय:
नारी शोषण
जैसे कोई छिपे,
अपनी आवाज़ के पीछे,
छिपे कोई किसी की बाहों में,
छिपे कोई बहस के आखिरी वाक्य में,
बहस की जीत में,
विजय में,
विजय पताका में,
एक ऐसे भयानक हादसे के बाद,
प्रेम की निष्ठुरता से ज्यादा भयानक कोई हादसा,
जिसमें उभारा गया हो आपका स्त्रीमन पूरी तरह,
जैसे वहशी हाथों से,
मानो, दरिंदो के हाथों से,
लगभग बलात्कार,
आज़ाद ज़िन्दगी का,
और फिर छिपना पुलिसिया फाइल में,
कागज़, अक्षर, कलम, दवात में,
जिससे हो जाये सब सफ़ेद, सफ़ेद,
जबकि वहां और उकेरा जाना था,
हादसे को,
और क्या उसे सिर्फ दफ़न करना था,
हादसे को,
सुलझाने की बजाए,
मिटाना खून के धब्बों को,
सुलझाने की बजाए,
और मुमकिन नहीं था ये,
मुमकिन था बहुत भयानक,
लम्बी, चौड़ी बहस करना,
इतनी बहस करना,
साफ़ सुलझे शब्दों में,
बेहद परिष्क्रित,
विदेशज भी शब्दों में,
इतनी बहस कि बचे नहीं,
शब्दों के अलावा दुनिया में कुछ,
गूढ़ तार्किक शब्दों के अलावा,
bahut dhanyawad Yashoda ji, intazar rahega
ReplyDeleteसंवेदनशील कविता!
ReplyDeleteवाकई व्यवस्था पर सटीक कटाक्ष करती कविता , क्या कहूँ शानदार और जानदार
ReplyDeleteYashoda ji, asha hai aapne Sumit ji se poocha hai, aur mujhe bhi aap soochit kar rahi hain, yeh link ka kya mamla hai? yani, ek rachna do jagah, main aapke blog ke liye aur bhi kavitayein bhejna chahoongi, kripya sampark dein, thanks, pankhuri
ReplyDeleteपंखुरी जी यशोदा जी को आपकी प्रविष्टि अच्छी लगी इसलिये इसकी चर्चा अपने ब्लॉग पर की...
Deletebahut sundar Pankhuri ji
ReplyDeleteबलात्कार व हत्या रोकने के लिए समाज की सोच को बदलना बुनियादी शर्त है
ReplyDeleteदामिनी जैसे घिनौने अपराधों में सिर्फ़ नेता और पुलिस को दोष देकर समाज को निरपराध नहीं माना जा सकता। बलात्कार और हत्या हमारे समाज का कल्चर है, अब से नहीं है बल्कि शुरू से ही है। तब न तो नेता होते थे और न ही पुलिस। तब क्या कारण थे ?
इसी देश में औरत को विधवा हो जाने पर सती भी किया जाता था लेकिन अब नहीं किया जाता। इसका मतलब, जिस बात में समाज की सोच बदल गई, वह घिनौना अपराध भी बंद हो गया। बलात्कार और हत्या अभी तक जारी हैं तो इसका मतलब यह है कि इस संबंध में समाज की सोच नहीं बदली है।
दुनिया के तमाम देशों पर नज़र डालकर देखना चाहिए कि किस देश में बलात्कार और हत्या के जुर्म सबसे कम होते हैं ?
उस देश में कौन सी नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक और वैधानिक व्यवस्था काम करती है। उसके बारे में अपने देशवासियों को जागरूक करके हम अपने समाज की सोच बदल सकते हैं और उसे अपनाकर इन घिनौने अपराधों को रोका जा सकता है।
मार्मिक यथार्थ पंक्तिया .........
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