ये अंतहीन सफर !!!
न जाने कौन है वो...
जिसके लिए चमकता है...
रात भर !!!
कितनी सदियाँ बीत गयी हैं
और अभी
कितनी बीतेंगी
यूँ ही...
फलक पर !!!
शायद कुछ तलाशता है...
शायद कुछ ढूंढता है !!!
या फिर...
मिली है उसे
सज़ा...
किसी को
रुसवा करने की...
किसी से बेवफाई करने की...
या फिर
दे रहा है सबूत...
अपनी वफ़ा का....
न जाने कब
खत्म होगा
चाँद का ये सफर....
ये अंतहीन
सफर !!!!
रचनाकार: श्री रविश ‘रवि’
फरीदाबाद, हरियाणा
Sundar Rachna....Raviish g.
ReplyDeleteThank u...ravinder ji...
Deleteआभार....
ReplyDeleteBahut khub Ravinder, congrates and wish you all the success!
ReplyDeletedhanyavad....pawan ji...
Deleteसफ़र अंतहीन सही अर्थहीन तो नहीं
ReplyDeleteहम रुकेंगे नहीं आसमाँ कोई भी हो
फूल की खुश्बू की है कद्र चारो तरफ
बाग़ फिर कोई भी हो बागवाँ कोई भी हो
आशावादिता से भरपूर रचना ,आभार रवि जी
आभार...नीलांश जी...
DeleteNice Feelings...dear....keep it up.
ReplyDeleteThnx...Prayaas..for appreciation...
DeleteBahut Khoob Ravishji Atisunder....
DeleteShukriya....Vipul...
Deleteशुक्रिया.....श्रीराम जी...
ReplyDeleteआभार...दिलबाग जी....
ReplyDeletePathik se bat karti hai fijaye, antaheen jeevan ka saya kyo pad raha chad ka ye safar, bar-bar duaaye kar raha
ReplyDeleteAabhar....Satish g...
Deletebehtarin rachna....na sirf chaand balki aap v ravinder ji na rukenge, na thakenge...
ReplyDeleteDhanyavad....Akash....ish behetrein comment ke liye.
DeleteVery nice poem. Touches the heart :)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
DeleteThnx a lot...Praveen g.
Deleteबहुत सुन्दर भावों से सजी अच्छी कविता.
ReplyDeleteनीरज 'नीर'
KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)
Shukriya....Neeraj g.
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