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Wednesday, February 27, 2013

शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 11

ये अंतहीन सफर !!! न जाने कौन है वो... जिसके लिए चमकता है... रात भर !!! कितनी सदियाँ बीत गयी हैं और अभी कितनी बीतेंगी यूँ ही... फलक पर !!! शायद कुछ तलाशता है... शायद कुछ ढूंढता है !!! या फिर... मिली है उसे सज़ा... किसी को रुसवा करने की... किसी से बेवफाई करने की... या फिर दे रहा है सबूत... अपनी वफ़ा का.... न जाने कब खत्म होगा चाँद का ये सफर.... ये अंतहीन सफर !!!!


रचनाकार: श्री रविश ‘रवि’

फरीदाबाद, हरियाणा

22 comments:

  1. Bahut khub Ravinder, congrates and wish you all the success!

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  2. सफ़र अंतहीन सही अर्थहीन तो नहीं
    हम रुकेंगे नहीं आसमाँ कोई भी हो

    फूल की खुश्बू की है कद्र चारो तरफ
    बाग़ फिर कोई भी हो बागवाँ कोई भी हो

    आशावादिता से भरपूर रचना ,आभार रवि जी

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    1. आभार...नीलांश जी...

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  3. Nice Feelings...dear....keep it up.

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  4. शुक्रिया.....श्रीराम जी...

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  5. आभार...दिलबाग जी....

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  6. Pathik se bat karti hai fijaye, antaheen jeevan ka saya kyo pad raha chad ka ye safar, bar-bar duaaye kar raha

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  7. behtarin rachna....na sirf chaand balki aap v ravinder ji na rukenge, na thakenge...

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    1. Dhanyavad....Akash....ish behetrein comment ke liye.

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  8. Very nice poem. Touches the heart :)

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  9. बहुत सुन्दर भावों से सजी अच्छी कविता.
    नीरज 'नीर'
    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)

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सुमित प्रताप सिंह,
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