प्रयाग में गंगा के तट पर लगे आस्था के महाकुंभ और दिल्ली में ज्ञान कुंभ 'राष्ट्रीय पुस्तक मेले' के साथ साथ देश की सिलिकान सिटी बंगलुरु में भी एक अनूठा महाकुंभ लगा। इस कुंभ का नाम था एयरो इंडिया । इस कुम्भ का आस्था से तो कोई सरोकार नहीं था लेकिन ज्ञान के लिहाज से यह सर्वथा उपयोगी था क्योंकि यहाँ पिद्दी से ज़ेफायर विमान से लेकर तेजतर्रार तेजस और भीमकाय ग्लोबमास्टर विमान तक न केवल मौजूद थे बल्कि हवा में अपने करतब भी दिखा रहे थे। जेफायर देखने में तो नन्हा सा है परन्तु यह दुश्मन के इलाके में अन्दर तक जाकर जासूसी कर सेनाओं के लिए आँख कान का काम करता है। ग्लोबमास्टर को तो हम चलती फिरती सेना कह सकते हैं।इस विशालकाय विमान में सैनिक,टैंक,टॉप और मिसाइल तक समा जाती हैं। तेजस तो हमारा अपना अर्थात देश में बना लाडला लड़ाकू विमान है जो हमारे वैज्ञानिकों की तकनीकी प्रगति का सशक्त उदाहरण है। इनके अलावा एफ -16, राफेल एवं सुखोई जैसे हवाई जहाज भी थे जिनकी गडगडाहट से दुश्मन का कलेजा थरथराने लगता है। इन विमानों के कारनामे इतने खतरनाक थे कि देखने वालों की साँसे थम जाए। आश्चर्यजनक,अद्भुत ,अद्वितीय ,अनूठा,अनमोल जैसे तमाम शब्द भी इन विमानों के खौफनाक कारनामों के सामने छोटे लगते हैं। हेलिकाप्टरों की बात
करें तो यहाँ सरल-सौम्य ध्रुव और इसका लड़ाकू संस्करण रूद्र से लेकर धनुष तक अपनी कलाबाजियां दिखा रहे थे । इसके अलावा भारतीय वायुसेना की हेलीकाप्टर टीम सारंग,चेक गणराज्य से आई फ्लाइंग बुल्स और रूस की रसियन नाइट्स जैसी दिग्गज टीम भी थी जो आकाश में जब अपने जौहर दिखाती हैं तो देखने वालों की रूह तक काँप जाती है। आसमान में इनकी अठखेलियाँ,हैरतअंगेज़ करतब और अदभुत संतुलन को देखकर लगता है कि वास्तव में जीवन-मरण के बीच मामूली सा अंतर होता है। पांच दिनों का यह आयोजन देखने वालों के लिए जीवन भर की उपलब्धि से कम नहीं होता। इस दौरान आसमान में अलग-अलग आकार-प्रकार और इन्द्रधनुषी रंगों के इतने सारे विमान वैसे ही नजर आ रहे थे जैसे मकर संक्रान्ति,लोहड़ी और गणतंत्र दिवस पर देश के तमाम हिस्सों में उड़ती पतंगे दिखती हैं। विमानों के अलावा विमानों से जुड़े कलपुर्जे,नवीनतम प्रौद्योगिकी,वायुसेनाओं के काम आने वाले सहायक उपकरणों सहित देश की तकनीकी कार्य-कुशलता का आइना भी यहाँ दिखाई दिया । एयरो इंडिया का आयोजन 1996 से हो रहा है और हर दो साल बाद एशिया का यह सबसे बड़ा मेला बंगलुरु के करीब यलहंका एयरबेस में लगता है। इस साल फरवरी के दूसरे हफ्ते में दुनिया भर से रोमांच की तलाश में आये लोगों, हवाई जहाज बनाने वाली कम्पनियों और विमानों की खरीद-फरोख्त से जुड़े व्यवसाइयों का यहाँ जमावड़ा हुआ और जमकर व्यवसाय भी हुआ। आम लोगों के लिए तो यह किसी सपने के पूरा होने जैसा है क्योंकि एक साथ दुनिया भर के हवाई जहाजों को कारगुजारियां करते हुए करीब से देखना वाकई दिलचस्प और अविस्मरणीय अनुभव होता है और मुझे इन नितांत अलग नजारों का आनंद उठाने का मौका मिला।
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Sunday, February 10, 2013
महाकुंभ से कम नहीं है बंगलुरु का हवाई जहाजों का कुंभ
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सच कहा आपने ... यह किसी महाकुंभ से कम नहीं !
ReplyDeleteबुद्धिमान बनना है तो चुइंगम चबाओ प्यारे - ब्लॉग बुलेटिनआज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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