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Saturday, February 9, 2013

शोभना काव्य सृजन पुरस्कार प्रविष्टि संख्या - 28

विषय: नारी शोषण  
हवा को चीरती थीं 
कुछ आवाजें नीर, निस्तेज़ 
सन्नाटे को छीलता वह एकालाप 
एक कं-प-क-पी, बदहवास सी

उसके पखवाज़ में आज 
वह शोखी नहीं थी, अल्हड़ 
जो किसी का मन-मृदंग 
मधुशाला कर दे 

नेत्र स्तब्ध बेचैन 
थी उबड-खाबड़ श्वास 
ओठं आक्रोश से भीजे-पसीजे
देह टूटे व्योम सी मौन, उदास 

एक फु-स-फु-सा-ह-ट सुनी
अबके वसंत हरी-भरी 
उसकी कोख, वैदेही 
जानकर उजाड़ दी गयी 

संतति के अनचिन्हे, पद्चाप 
करते हैं प्रश्न 
मनु सभ्यता से साधिकार  
और कितनी वैदेही ?

रचनाकार: सुश्री चंद्रकांता


नई दिल्ली 

1 comment:

  1. बहुत बढ़िया
    शुभकामनायें आदरेया ||

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