गुप्ता जी ने शून्य की ओर निहारते हुए मिश्रा जी से जा पूछा "मिश्रा जी क्या मिश्रानी के ख्यालों में खोये हुए हैं?"
"अरे नहीं गुप्ता जी हम तो कुछ और ही सोच रहे थे। मिश्रा जी एक लंबी साँस लेते हुए बोले।
"तो फिर इस उदासी की वजह क्या है?" गुप्ता जी ने पूछा।
मिश्रा जी आँखें नम करते हुए बोले, "गुप्ता जी अब आपसे कैसे कहें? सामने देखिए पांडे को ससुरा हाथ और पैरों से अपाहिज है, लेकिन फिर भी हमसे ऊँचे पद पर जमा हुआ है और एक हम हैं कि शरीर से ठीक-ठाक होते हुए भी उससे जूनियर हैं।"
गुप्ता जी हँसते हुए बोले, "पांडे और आपमें बहुत फर्क है।"
मिश्रा जी ने गंभीर होकर पूछा, "कैसा फर्क है?"
"पांडे शारीरिक रूप से अपाहिज है और आप मानसिक रूप से।" इतना कहकर गुप्ता जी अपनी सीट की ओर चल दिये।
रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
शुक्रिया वंदना जी...
Deleteबहुत ही ज्ञानप्रद है आपकी लघुकथा,आभार।
ReplyDeleteशुक्रिया राजेन्द्र जी...
Deleteसफल सन्देश देती और मनोभावों को इमानदार से परखती और व्यक्त करती सफल कृति ,प्रभावशाली लघु कथा,शुभकामनाये
ReplyDeleteशुक्रिया प्रवाह जी...
Deletebahut sunder ...
ReplyDeleteशुक्रिया मानव जी...
Deletebilkul sahi jawab. uttam laghu katha
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