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Friday, February 8, 2013

शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 6



भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के

ले गए मुंड काट कायर धुंध में सूरत छुपा के 

भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
नर पिशाचो के कुकृत्य अब सहे ना  जायेंगे 
दो के बदले दस कटेंगे अब रहम ना  पायेंगे
बे ज़मीर हो तुम दुश्मनी  के भी लायक नहीं
कहें जानवर तो होता उनका भी अपमान कहीं
होते जो इंसा ना जाते अंधकार में दुम दबा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
बारूद  के ज्वाला मुखी  को दे गए चिंगारी तुम
अब बचाओ अपना दामन मौत के संचारी तुम 
भाई कहकर  छल से पीठ पर करते वार हो
तुम कायर तुम नपुंसक   बुद्धि से लाचार हो
मृत हो संवेदना जिसकी वो खुदा का बंदा नहीं 
माँ का दूध पिया जिसने वो भाव से अंधा नहीं 
मूषक स्वयं शिकारी समझे सिंघों के शीर्ष चुराके  
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के 
 देश के बच्चे बच्चे को तुमने अब उकसाया है 
राम अर्जुन भगत सिंह ने अब गांडीव उठाया है 
मत लो परीक्षा बार बार तुम देश के रखवालो की 
बांच लो किताब फिर से आजादी के मतवालों की 
वही  लहू है वही  युवा हैं वही वतन की है  माटी 
वही जिगर है वही हवा है वही जंग  की परिपाटी 
 ले रहे सौगंध सिपाही छाया में अपनी ध्वजा के 
भर रही हुंकार सरहद लहू  का टीका सजा के




रचनाकार: सुश्री राजेश कुमारी 


देहरादून, उत्तराखंड

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