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Saturday, March 30, 2013

व्यंग्य: जुग-जुग जियें मुन्ना भाई

   न दिनों मुन्ना भाई और उनके प्रेमी भाई बड़े दुखी हैं। उनका दुःख है भी तो बहुत बड़ा। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने मुन्ना भाई को उनके कुकर्मों की सज़ा जो सुनाई है। इस सज़ा से मुन्ना भाई को अपने नन्हें - मुन्हों के भविष्य की चिंता सता रही है। मुन्ना भाई जहाँ अपने नन्हें-मुन्हों के लिए चिंतित हैं, वहीं मुन्ना भाई के चाहने वाले भाई अपने मुन्ना भाई को श्री कृष्ण जी के जन्मस्थान भेजे जाने को आतुर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दिन-रात कोसे जा रहे हैं। आम आदमी के संग-संग कुछ विद्वान भी मुन्ना भाई को इस आधार पर माफ किए जाने की गुहार लगा रहे हैंकि मुन्ना भाई अब भाईगीरी को छोड़कर गांधीगीरी अपना ली है। उनकी पिछली फ़िल्में इस बात का सबूत हैं। अब ये और बात हैकि मुन्ना भाई को फिल्मों में गांधीगीरी के ड्रामे के लिए फिल्मकारों ने करोड़ों रुपए शुल्क भी दिया है। एक तर्क यह भी दिया जा रहा हैकि मुन्ना भाई के जेल जाने से फिल्म इंडस्ट्री को करीब 250 करोड़ रुपयों का नुकसान होगा। 1993 के बम धमाकों में जो देश के 56 अरब रुपयों का नुकसान हुआ, उनसे शायद फिल्म इंडस्ट्री के 250 करोड़ रुपए ज्यादा कीमती हैं और बेशक धमाकों में 250 निर्दोष लोगों की जानें चली गयीं पर आप ही सोचिए उन निर्दोषों से कीमती उनके बाल-बच्चों की जानें हैं और हम सबको उनके भविष्य की चिंता तो करनी ही चाहिए। अरे अगर उन्होंने ए.के.-56 जैसे छोटे-मोटे हथियार अपने पास रख भी लिए तो क्या गुनाह कर दिया। भई वो बड़े आदमी हैं और उन्हें आप और हम जैसे छोटे लोगों से खतरा रहता हैइसलिए ऐसे हथियार साथ रखने जरूरी होते हैं। अब आप तर्क देंगे कि उन्होंने अपने घर में आतंकवादियों से प्राप्त विस्फोटों में प्रयुक्त अन्य चीजें भी रखीं और उनके इन आतंकवादियों से निरंतर संबंध भी रहे हैं। फिर वही घिसी-पिटी बात। अरे साब मुन्ना भाई का पारिवारिक इतिहास नहीं जानते। अजी उनके पिता फिल्म व राजनीति की एक जानी-मानी शख्सियत रहे हैं और उनकी बहन भी कुछ न कुछ तो राजीतिक रुतबा रखती ही हैं। अब वो अपने बराबर वालों से संबंध रखेंगे या फिर हम और आप जैसे मानुषों से। वैसे भी उनके चाहनेवाले देश-विदेश में फैले हुए हैं और अब तो आतंकियों को परम आदरणीय मानने वाले माननीय महोदय ने भी उन्हें छोड़ने की पैरवी कर दी। आँसू बहाने वाला आँसू गैंग भी उनके लिए निरंतर आँसू बहा रहा हैजिसके संग आतंकी मुठभेड़ों पर आँसू बहाने के विशेषज्ञ महोदय भी सम्मिलित हो चुके हैं। अगर ऐसे इंसान पर सुप्रीम कोर्ट रहम न करेतो यह तो बहुत ही गलत बात है। देखिए मरने वालों के भाग्य में तो मरना चित्रगुप्त महाराज ने अपनी डायरी में पहले ही लिख दिया थाबम धमाकों से न मरतेतो किसी और ढंग से मरते। उनके जीने और मरने से आप और हमें भला क्या फर्क पड़ेगा। वे सब थे भारत के आम आदमी और मुन्ना भाई ठहरे एक खास आदमी। ऐसे खास आदमीजो अगर छींकें भी तो मीडिया इतना चिंतित हो उठता हैकि दिन-रात उनके छींकने को ही अपनी मुख्य खबर बना लेता है। अब ऐसे खास आदमी काजो मनोरंजन जगत का भी खासम-खास होखास ख्याल तो रखना ही चाहिएक्योंकि हम भारतीयों को कुछ और चीज की जरूरत हो या न होलेकिन मनोरंजन जरूर होना चाहिए और मनोरंजन के लिए फिल्में मुख्य साधन हैंजहाँ पर छाये मिलते हैं अपने मुन्ना भाई। मुन्ना भाई जैसे लोग हमारे साथ रहेंगे तो फिर कभी कोई बम धमाका होगा और जन और धन का नुकसान होगा तो उस दुःख से उबारने के लिए हमें मुन्ना भाई की जादू की झप्पी की जरूरत तो पड़ेगी न। तो अब अपनी जिद छोड़कर आप भी मेरे साथ दुआ करते हुए बोलें, “जुग-जुग जियें मुन्ना भाई!
रचनाकार: सुमित प्रताप सिंह
इटावा, नई दिल्ली, भारत 

8 comments:

  1. गलती तो गलती होती है ........ हम इसमें साथ खड़े नही हो सकते जिसमे इंसानियत की मौत हुई हो !!

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  2. aap accha liktay hai. aap ke post ka intzar rahta hai.

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    1. शुक्रिया संदीप त्रिपाठी जी. आप जैसे मित्रों के प्रोत्साहन से अच्छा लिखने की प्रेरणा मिलती है...

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  3. "नायक नहीं खलनायक हूँ मैं"
    और कुछ नहीं सुमित जी, बस इनकी पारिवारिक साख ने इन्हें बचा रखा था, वरना ये तो अब तक "सरकारी दामाद " बने रहते..
    ..और हाँ, इस कड़ी में अगला नंबर सल्लू मियाँ का है ..
    "सार्थक व्यंग्य के लिए दिल की अतल गहराइयों से बधाई स्वीकार करें । "
    — आपका अनुज
    ★अंकित गुप्ता 'अंक' ★

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    1. आमीन व शुक्रिया अंक...

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  4. सार्थक व्यंग्य

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    1. शुक्रिया अंजू चौधरी जी...

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