विषय: नारी शोषण
इंद्र का पाप
चंद्र का साथ,
गौतम का शाप
अहिल्या का संताप.
दिल्ली की दरिंदगी
दिमाग की गन्दगी.
नारी को पाषाण
बनाने का क्रम जारी
है,
सड़कों की तो छोड़ो
घरवालों ने गर्भ में
मारी है.
खामोश होती मासूम
किलकारियाँ
नियति की शिकार होती
लड़कियाँ,
दीये सी जलती
आँधियों से जूझती,
झूठे भरोसे में
मोम सी पिघलती.
अरे! ज्योति तले यह
कैसा अभेध अँधेरा है
अतिथि बन गयीं काली
रातें
उस पर घना होता
कोहरा है.
खराब दर खराब होता
मौसम
दे रहा तंत्र
गिरगिटिया आश्वासन
आधी आबादी के साथ
जुर्म यह संगीन है,
फास्ट-ट्रेक कोर्ट
में
मामला विचाराधीन है.
रचनाकार: श्री कैलाश ‘पर्वत’
दिबियापुर (औरैया) उ.प्र.
बिलकुल सत्य व् एकदम सही बात कही है आपने .सार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति मरम्मत करनी है कसकर दरिन्दे हर शैतान की #
ReplyDeletejab nari shaki jagegi
DeleteTab duniya rahne layak ho jayegi.
साधु
ReplyDeleteकवि को शानदार रचना के लिए साधुवाद
ReplyDeleteदिल छु लिया
ReplyDeleteबहुत खूब कैलास भाई ...नारी का सम्मान जरूरी है और इसकी शुरूवात सबसे पहले हमें अपने घर से ही करनी है।
ReplyDeleteबहुत खूब कैलास भाई ...नारी का सम्मान जरूरी है और इसकी शुरूवात सबसे पहले हमें अपने घर से ही करनी है।
ReplyDeleteBAHUT ACCHI KAVITA HAI. NARI HAMESHA SAMMANIYA RAHI HAI AUR RAHEGI.
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