विषय: नारी शोषण
जब मैं इस
दुनिया में आई
तो लोगों के दिल में उदासी
चेहरे पर झूठी खुशियां पाई।
थोड़ी बड़ी हुई तो देखा
भाई के लिए आते नए कपड़े
मुझे मिलते
भाई के ओछे कपड़े।
काठी का घोड़ा, हाथी, बंदर आया
भाई खेलकर थक जाता या
उसका जब मन भर जाता
तब ही हाथी, घोड़ा दौड़ाने
का
मेरा नंबर आता।
मैं यही सोचती
रही हमेशा
क्यूं मुझे भाई का पुराना बस्ता मिलता
न चाहते हुए भी
फटी-पुरानी किताबों से पढऩा पड़ता।
उसे स्कूल जाते रोज रुपए दो मिलते
मुझे एक रुपए
से ही मन रखना पड़ता।
थोड़ी और बड़ी
हो, कॉलेज पहुंची
भाई का मन नहीं था पढऩे में फिर भी
उसका दाखिला बढिय़ा कॉलेज में करवाया
मेरी बहुत-बहुत इच्छा थी लेकिन
मेरे हिस्से सरकारी कन्या महाविद्यालय आया।
और बड़ी हुई
हाथ हुए पीले, ससुराल गई
वहां भी काफी
कुछ वैसा ही पाया।
जब भी बीमार
होती तो
किसी को मेरे
दर्द का अहसास न हो पाता
सब अपनी धुन
में मग्न
बहू पानी ला, भाभी खाना देना
मम्मी दूध
चाहिए, अरे मैडम जरा चाय बना देना।
और बड़ी हो गई
उम्र के आखिरी पड़ाव पर आई
सोचा था, अब खुशी मिलेगी
किन्तु, हालात और भी बिगड़े
शाम-सबेरा रोज बहू के नए-नए
ताने-तराने से
ही होता।
दो वक्त की
रोटी में भी ज्यादातर
नाती-पोतों का
जूठन ही मिलता।
अंतिम यात्रा
के लिए
चिता पर हो
सवार, सोच रही थी -
मेरे हिस्से
में हरदम जूठन ही क्यों आया?
रचनाकार - श्री लोकेन्द्र सिंह राजपूत
behtareen srijan..
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