सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Sunday, March 3, 2013

शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 14

ग़ज़ल
सोचो तुम तन्हाई में 
लुटते हम दानाई में ।

उथले जल में कुछ न मिले 
मिलता सब गहराई में ।

दौलत को सब कुछ माना 
उलझे पाई - पाई में ।

हमको भाते गैर सभी 
दुश्मन दिखता भाई में ।

दिल का खेल बड़ा मुश्किल 
खोई नींद जुदाई में ।

विर्क यकीं बस तुम करना 
दें दिल चीर सफाई में ।

रचनाकार: श्री दिलबाग विर्क
सिरसा, हरियाणा 

7 comments:

  1. बढ़िया प्रस्तुति |
    शुभकामनायें दिलबाग जी को भी-

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर रचना!
    बधाई हो भाई दिलबाग विर्क जी!

    ReplyDelete
  3. ...बहुत ही सुन्दर रचना!...आभार!

    ReplyDelete
  4. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल की प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
  5. नि:संदेह पुरस्कार योग्य लाजवाब गज़ल, बधाइयाँ....

    ReplyDelete

यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!