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Monday, January 21, 2013

शोभना ब्लॉग रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या- 1

माल बेचने का अश्लील तरीका
 भा रत में बाजार यौन फंतासियों के इर्द-गिर्द सिमट रहा है। विज्ञापन जगत मनुष्य की यौनिक संवेदनाओं को कुरेद-कुरेद कर जगा रहा है और पैसा बना रहा है। क्या नैतिक और क्या अनैतिक, इससे उसे कोई वास्ता नहीं। विज्ञापन बाजार बस मनुष्य की मनुष्यता का दोहन कर रहा है। यौन व्यवहार को जीवन की प्राथमिकता और सफलता के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। टेल्क पाउडर से लेकर सोड़ा पाउडर तक बेचने के लिए नग्नता बेधड़क परोसी जा रही है। ऐसा नहीं है कि विज्ञापन के क्षेत्र में सृजन की कमी है। यहां कई रचनाधर्मी काम कर रहे हैं। नतीजतन, कई बेजोड़ विज्ञापन देखने में आ रहे हैं, जो समाज की बुराई पर सीधी चोट कर रहे हैं, मनुष्य के कलेजे को फड़कने का बंदोबस्त कर रहे हैं। फिर भी, बाजार के चूल्हे पर गंदगी क्यों उबल रही है? समझ से परे है। ऐसे में कई बार साजिश की बू आती है। जैसे भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को पीछे धकेलने का षड्यंत्र रचा जा रहा हो। मनुष्य से उसकी मनुष्यता छीनने की साजिश हो। इंसान को यौन संदर्भ में जानवर बनाने की व्यवस्था हो। जो भी है यह, बेहद घातक है। संभलना होगा हमें, निगरानी संस्थाओं और नीति निर्माताओं को भी। उत्पादन बेचने के लिए विज्ञापन कंपनियों की मनमानी अधिक दिन तक नहीं चलनी चाहिए। इस मनमानी को रोकने में ही सबकी भलाई।
    एक दिन मेरे परिवार का नन्हा सदस्य (तीन वर्ष) अपने बालों को सीधा करते हुए बुदबुदा रहा था। मैंने उससे पूछा क्या कर रहा है? इस पर उसने इतराते हुए कहा- मामा, ऐसा करने से लड़कियां फिदा हो जाएंगी। दरअसल, वह कोमल हृदय का बालक 'बालों में लगाए जाने वाले जैल' के विज्ञापन की नकल कर रहा था यानी वह उक्त भौंड़े विज्ञापन से सीख रहा था लड़की पटाने का फंडा। कुछ समय पहले एक जेंट्स अण्डरवियर का विज्ञापन आता था। इसमें अण्डरवियर को धोते वक्त महिला को अतिकामुक होते दिखाया जाता था। इस विज्ञापन पर बड़ा बवाल मचा। मचना भी चाहिए था। बाद में इसका प्रसारण बंद हो गया। लेकिन, ऐसे विज्ञापन तो अब भी बड़ी संख्या में बन रहे हैं और दिख रहे हैं।
स्त्रीत्व का निरादर : बॉडी स्प्रे की खुशबू से मदहोश होकर सारी वर्जनाएं तोड़कर युवक के पीछे युवती का चले आना, बिस्तर से अंतवस्त्रों को उतार फेंकना। कपड़े (जींस) के विज्ञापन में नग्न पुरुषों को दिखाना। यहां भी उक्त कंपनी के जींस पहनने के बाद पुरुषों का संसर्ग पाने के लिए स्त्री को लंपट होते दिखाया गया है। डर्टी विज्ञापन नग्नता ही नहीं परोस रहे बल्कि स्त्री अस्मता से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। यह अधिक चिंता की बात है। डर्टी कैटेगरी के सभी विज्ञापन यही दिखाते हैं कि मनुष्य जाति में स्त्री सबसे ज्यादा कामुक है। काम इच्छाओं पर उसका जोर नहीं, वह इनके आगे हार जाती है। स्त्री की सोच सेक्स से शुरू होकर सेक्स पर ही खत्म हो जाती है। डर्टी विज्ञापन में भारत में शीर्ष पर बैठी स्त्री को दोयम दर्जे पर धकेलने का षड्यंत्र साफ दिखता है।
सकारात्मकता ही है हिट फार्मूला : सामान बेचने के लिए डर्टी विज्ञापन ही एकमात्र सफल फार्मूला नहीं है। निरमा, एमडीएच मसाला, टाटा चाय, बजाज स्कूटर सहित कई उदाहरण हैं। इन कंपनियों के ऐसे कई विज्ञापन हैं जो इतिहास के पृष्ठ पर स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हो गए हैं। एक भी डर्टी विज्ञापन उतना बड़ा हिट नहीं हुआ जितना कि ये साफ-सुथरे विज्ञापन रहे। आजकल प्रसारित हो रहा चाय कंपनी का विज्ञापन - देश उबल रहा है। उबलेगा तभी तो आएगा जोश, बढ़ेगी मिठास, बदलेगा देश का रंग....  भ्रष्टाचार के खिलाफ देशभर में चल रही मुहिम का हिस्सा लगता है। इस विज्ञापन को देखकर लगता है कि समाज जागरण का काम तो सामान बेचने के साथ भी किया जा सकता है। एक अनुमान के मुताबिक यह विज्ञापन अन्य डर्टी विज्ञापन से कही अधिक हिट है। ग्राहक को उत्पाद की ओर आकर्षित तो करता ही है उसके मन में कुछ करने का जज्बा भी भरता है। इस तरह के विज्ञापन मनुष्य देह के उन्नत शिखर (मस्तिष्क) में स्पंदन करते हैं। यहां स्पष्ट कर हूं कि मेरा ऐसा मानना कतई नहीं है कि आप सामान न बेंचे या हर सामान बेचने के साथ समाज सृजन करें। लेकिन, कम से कम समाज को दूषित तो न करें। हर कोई आगे जाना चाहता है। बाजार में अपनी 'आवाज' सबसे ऊंची रखना चाहता है। लेकिन, इसके लिए समाज को क्या कीमत चुकानी पड़ रही है यह तो सोचना ही पड़ेगा।
प्रतिक्रियाओं पर देना होगा ध्यान :  समाज जागरण में लगी संस्थाओं के प्रयासों के चलते नागरिक जागरूक हुए हैं, वे अपनी प्रतिक्रिया दर्ज कराने के लिए आगे आने लगे हैं। यही कारण है कि पिछले कुछ सालों में डर्टी विज्ञापनों के खिलाफ काफी शिकायतें हुई हैं। विज्ञापनों पर नजर रखने वाली स्वयंसेवी स्वनियंत्रित संस्था एडवरटाइजिंग काउंसिल ऑफ इंडिया (एएससीआई) के पास प्रतिदिन डर्टी विज्ञापनों को लेकर हजारों शिकायतें पहुंचती हैं। अफसोस की बात है कि इसके बाद भी इस तरह के विज्ञापनों पर रोक लगना तो दूर इनमें कमी नहीं आई है। हालांकि इस बीच एएससीआई ने सूचना प्रसारण मंत्रालय को इस संबंध में एक प्रस्ताव भेजा है। इस प्रस्ताव में डर्टी विज्ञापनों का प्रसारण रात ११ से सुबह ६ बजे के बीच करने की सिफारिश की गई है। एएससीआई ने बाकायदा ऐसे विज्ञापनों की सूची भी मंत्रालय को भेजी है। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी इस मसले को गंभीरता से लिया है। विभाग की मंत्री अंबिका सोनी ने हाल ही में लोकसभा के प्रश्नकाल में बताया था कि विज्ञापनों की नीति निर्धारण के लिए मंत्रियों का एक समूह बनाया गया है। यह समूह जल्द ही इस मसले पर अपनी राय देगा। डर्टी विज्ञापनों का प्रसारण रात ११ से सुबह ६ बजे के बीच करने से समस्या का हल नहीं होगा। क्योंकि आजकल की जीवनशैली ऐसी है कि बच्चे भी देर रात तक टेलीविजन देखते हैं। डर्टी विज्ञापनों को लेकर लोगों में कितना आक्रोश है, उनकी क्या प्रतिक्रियाएं हैं और वे क्या चाहते हैं, मंत्रियों के समूह को यह जरूर जानना चाहिए। मंत्री समूह की राय कुछ ऐसी हो जो लोगों को पसंद आए न कि कंपनियों के मालिकों को। मंत्री समूह को इस दिशा में अपनी राय बनाने से पहले उन तमाम प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करना चाहिए जो एएससीआई पर प्रसारण मंत्रालय तक लोगों ने पहुंचाईं हैं। 

रचनाकार - श्री लोकेन्द्र सिंह राजपूत

सीनियर सब एडिटर, नई दुनिया, ग्वालियर, म.प्र.

9 comments:

  1. बहुत बुरा लगा
    कि हमें पता ही नहीं लगा
    सम्‍मानों के इस महासागर का।

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    1. देर आए दुरुस्त आए. अब गिले-शिकवे करना छोड़ आप भी कूद पड़ें सम्मानों के इस महासागर में...

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  2. गंभीर समस्या पर सामयिक और सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...

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    1. शुक्रिया श्री चतुर्वेदी जी

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  3. इन विज्ञापनों से किसका भला होगा पता नहीं पर देश के बच्चों का व्यक्तित्व जरूर बिगड रहा है और उसका परिणाम हम आये दिन हुई दुराचार और अपराधों की खबर में देखते हैं.
    समस्या बहुत गंभीर है कोई सख्त कदम उठाया ही जाना चाहिए.शुरुआत खुद से करें ऐसे विज्ञापनों वाले उत्पादों का बहिष्कार करके.जब माल बिकेगा नहीं तो अक्ल अपने आप ठिकाने आ जायेगी.

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    1. सही कहा शिखा जी... आपकी बात से सहमत

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  4. Ek dum naya kadam hai FB ki dunia me aur. Tecnology me jara haath tang hai par ghumte ghumte aap tak pahunch gaya aur kuch likhne k aapke nivedan ne himmat dikayi chal padi unglia waise ye aapsabka technical sansaar mayavi aur majedaar hai chliye aate rahebge gud nit ashish pandey mauganj rewa

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  5. कहीं न कहीं ओर किसी न किसी को शुरुआत करनी ही हगी ..
    सटीक लेखन लोकेन्द्र जी ...

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