वो पहली बारिश
तेरा - मेरा साथ-साथ होना,
कुछ यूँ बरसा था पानी
उस दिन....
मानों जी भर के
देख लेना चाहता हो वो भी तुम्हें,
खुद को छिपाने की तुम्हारी नाकाम कोशिशें
कभी हथेलियों से,
कभी दुपट्टे के कोने से,
मिटटी की सोंधी खुशबू भी खो गयी थी
तुम्हारे बदन की खुशबू में,
पर बूँदें भी कुछ शरारती हो चली थीं
लेना चाहतीं थी बोसा तुम्हारा
खेलना चाहतीं थीं गेसुओं से तुम्हारी,
कुछ बूंदों का तुम्हारे रुखसार पे आके
कुछ देर रुकना और फिर मचल जाना
उफ़....
शबनम भी शरमा गयी थी ....खुद में.....
यूँ लगा की भवरों ने ले लिया है रूप बूंदों का
और चुराना चाहती हो रस
तुम्हारी नजाकत का,
तुम्हारे हुस्न का,
तभी एक सर्द हवा की लहर का आना
और तेरा वो खुद में सिमट जाना....
बारिश कि बूंदों में भी
मेरे माथे पे पसीने ने दस्तक दी....
और फिर तुम्हारा
लड़खड़ा के मेरे करीब आना
और मेरा कन्धा थामना,
लगा.....
यूँ कि बारिश आज
मुझ पर मेहरबान है,
उसके रुखसार से ढलक कर
बूंदों ने मेरे कानो में सरगोशी की -
बहुत प्यारा है
महबूब तुम्हारा..........
छुपा लो इसे अपने आगोश में,
ऐसा न हो कि बदल जाये नीयत हमारी
बरसतें रहें हम और
आसमाँ हो जाये ख़ाली |
रविश 'रवि'
फरीदाबाद
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