क्या प्याज इतना ज़रुरी है
कि वह हमारे दैनिक जीवन पर असर डाल सकता है? प्याज के बिना हम हफ्ते भर भी गुजारा नहीं कर सकते? तो फिर प्याज के लिए इतनी
हाय-तौबा क्यों? और यदि ऐसा है तो फिर
व्रत/उपवास/रोज़ा/फास्ट या आत्मसंयम का दिखावा क्यों? कहीं हमारी यह प्याज-लोलुपता
ही तो इसके दामों को आसमान पर नहीं ले जा रही?
मेरी समझ में मुंह को
बदबूदार बनाने वाली प्याज न तो जीवन के लिए अत्यावश्यक ऊर्जा है, न हवा है, न पानी
है और न ही भगवान/खुदा या गाड है कि इसके बिना हमारा काम ही न चले. क्या कोई भी
सब्ज़ी इतनी अपरिहार्य हो सकती है कि वह हमें ही खाने लगे और हम रोते-पीटते उसके
शिकार बनते रहे? यदि ऐसा
नहीं है तो फिर कुछ दिन के लिए हम प्याज का बहिष्कार क्यों नहीं कर देते? अपने आप
जमाखोरों/कालाबाजारियों के होश ठिकाने आ जायेंगे और इसके साथ ही प्याज की कीमतें
भी. बस हमें ज़रा सा साहस दिखाना होगा और वैसे भी प्याज जैसी छोटी-मोटी वस्तुओं के
दाम पर नियंत्रण के लिए सरकार का मुंह ताकना कहाँ की समझदारी है. अगर आप ध्यान से
देखें तो देश में प्याज के दाम बढ़ने के साथ ही तमाम राष्ट्रीय मुद्दे पीछे छूटने
लगे हैं. भ्रष्टाचार के दाग फीके पड़ने लगे हैं और टू-जी स्पेक्ट्रम के घाव भी
भरने लगे हैं.हर छोटी सी समस्या को विकराल बनाने में कुशल हमारे न्यूज़ चैनल और
समाचार पत्र अब घोटालों के गडबडझाले को भूल गए हैं और खुलकर महंगाई की मार्केटिंग
कर रहे है.प्याज की बढती कीमतों को वे दूरदराज और यहाँ तक की प्याज उत्पादक
राज्यों में ले जाकर वहां भी इसकी कीमत बढ़ा
रहे हैं. देश और खासकर दिल्ली में बढते अपराधों एवं समस्याओं से भी ज्यादा
महत्वपूर्ण मीडिया के लिए प्याज हो गयी है.अब वे सुबह से शाम तक “राग प्याज” अलाप रहे हैं. मीडिया के
दबाव में मंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सफाई देते नहीं थक रहे हैं. दिल्ली में तो
मुख्यमंत्री को सस्ती(पचास रुपये किलो) प्याज बेचनी पड़ रही है. देश में इतनी
अफरा-तफरी तो किसानों की आत्महत्या, जमीन
घोटालों और पकिस्तान-चीन के उकसावे में भी नहीं मची जितनी प्याज की कीमतों को लेकर
मच रही है गोया प्याज न हुई ‘संजीवनी’ हो गई.
शायद यह हमारी जल्दबाजी का
ही नतीजा है कि जिस देश में करोड़ों लोग डायबिटीज(मधुमेह) की बीमारी का शिकार हों
और पर्याप्त इलाज के अभाव में तिल-तिलकर दम तोड़ रहे हो उसी देश में चीनी की
कीमतें आसमान छू रही हैं. कुछ इसीतरह ब्लडप्रेशर(रक्तचाप) के मामले में दुनिया भर
में सबसे आगे रहने वाले हम भारतीय, नमक की जरा सी कमी आ जाने पर नासमझों जैसी हरकत
करने लगते हैं और अपने घरों में कई गुना दामों पर भी खरीदकर नमक का ढेर लगा लेते
हैं जबकि हकीकत यह है कि ज्यादा नमक खाने से लोगों को मरते तो सुना है पर कम नमक
खाकर कोई नहीं मरता और वैसे भी तीन तरफ़ समुद्र से घिरे देश में कभी नमक की कमी हो
सकती है? कुछ इसीतरह की स्थिति एक बार पहले भी नज़र आई थी जब हमने बूँद-बूँद दूध
के लिए तरसते अपने देश के बच्चों को भुलाकर भगवान गणेश को दूध पिलाने के नाम पर
देश भर में लाखों लीटर दूध व्यर्थ बहा दिया था.
प्याज के बारे में जब मैंने इन्टरनेट खंगाला तो
कई अहम जानकारियां सामने आई मसलन प्याज को आयुर्वेद में राजसिक और तामसिक गुण का
मानते हुए खाने की मनाही की गयी है क्योंकि यह हमारे तंत्रिका तंत्र को उत्तेजित
कर हमें सच्चाई के मार्ग से भटकाता है.यही कारण है कि ज्यादातर हिन्दू परिवारों
में प्याज या इससे बने व्यंजन भगवान को भोग में नहीं चढ़ाए जाते. जिस प्याज को हम
अपने आराध्य देव को नहीं खिला सकते उसे खरीदने के लिए इतनी बेताबी क्यों? एक
पश्चिमी विद्वान का कहना है कि प्याज हमारी जीवन ऊर्जा को घटाती है. यही नहीं
प्याज में बैक्टीरिया को खींचने की इतनी जबरदस्त क्षमता होती है कि यदि कटी कच्ची
प्याज को दिनभर खुले में तो क्या फ्रिज में भी रख दिया जाए तो यह इतनी जहरीली हो
जाती है कि हमारे पेट का बैंड बजा सकती है.
सोचिये, हम एकजुट होकर
अंग्रेजों को देश से बाहर निकाल सकते हैं,भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा सकते हैं पर मामूली सी प्याज को छोड़ने
की हिम्मत नहीं दिखा सकते और वह भी महज चंद दिनों के लिए? देश में गरीबी,अशिक्षा,बीमारी,भ्रष्टाचार,क़ानून-व्यवस्था,कन्या भ्रूण हत्या,दहेज और बाल विवाह जैसी ढेरों
समस्याएँ हैं इसलिए प्याज के लिए आंसू बहाना छोड़िये और यह साबित कर दीजिए कि हम प्याज
के बिना भी काम चला सकते हैं.....तो नेक काम की शुरुआत आज नहीं बल्कि अभी से क्यों
नहीं.
संजीव शर्मा
संपादक, सैनिक समाचार
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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