हर सरकारी
कार्यालय में एक बड़े साहब होते हैं और बाकी उनके अंतर्गत कार्य करनेवाले छोटे-मोटे
प्राणी। बड़े साहब के निर्देशन में पूरा कार्यालय और कार्यालय के कर्मचारी कर्मठता
और विवशता से जुटे रहते हैं। कार्यालय में बड़े साहब से भी बड़े एक साहब विराजमान
होते हैं और वो होते हैं सबसे बड़े साहब। कहने को तो वो बड़े साहब के अंतर्गत उनकी
सेवा में नियुक्त एक सरकारी कर्मचारी मात्र होते हैं लेकिन असल में जो दिखता है वो
होता नहीं है और जो होता नहीं है वो न दिखकर भी देखना पड़ता है। इसलिए बड़े साहब
बेशक बड़े दीखते हों लेकिन असल में वो सबसे बड़े साहब नहीं होते या यूँ कहें कि
उनमें सबसे बड़े साहब बनने का सामर्थ्य ही नहीं होता।
कार्यालय के अल्प बुद्धि धारक कर्मचारी सबसे बड़े साहब को बड़े
साहब का मात्र मातहत कर्मचारी मानकर उनको छोटा समझने की भूल अक्सर करते रहते हैं।
यही भूल उनकी कठिनाइयों का सबसे बड़ा कारण होती है। सबसे बड़े साहब बड़े साहब की सेवा
में दिन भर रत रहते हैं और उनकी हर सुख-सुविधा का ध्यान रखते हैं। उनका कर्तव्य
होता है ऐसा प्रत्येक कार्य करना जो हम आम जीवों के वश के बाहर की बात हो और जो
बड़े साहब को तन और मन का सुख प्रदान कर सके तथा सबसे बड़े साहब को सबसे बड़ा बना
रहने में सहायक बना रहे। हम कमअक्लों को ये कार्य शायद छोटे लगते हों लेकिन ये
छोटी सोच ही हमें छोटा बनाये रखती है और जो इस छोटी सोच से ऊपर उठकर कार्य करता है
वो बनता है सबसे बड़ा साहब।
बड़े साहब के इर्द-गिर्द लगभग पाँच वर्ग मीटर का घेरा होता है जिसमें तैनात रहते हैं सबसे बड़े साब। दूसरे शब्दों में कहें तो यह घेरा सबसे बड़े साहब का साम्राज्य होता है जिसके वो अघोषित सम्राट होते हैं। आदमी तो आदमी किसी पंछी की भी मजाल है जो इस घेरे में पर भी मार जाये। बड़े साब के कानों के आस-पास ही सबसे बड़े साब मुख रहता है और उस मुख से दफ्तर की हर टुच्ची से टुच्ची बात बड़े साब के कानों से होती हुई उनके मस्तिष्क में सप्लाई होती रहती है।
बड़े साहब बेशक थोड़ा-बहुत नाराज भी हो जाएँ तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन अगर सबसे बड़े साहब हमसे नाराज हो गए तो समझो कि भैंस गई पानी में। हमारे इस डर को सबसे बड़े साहब भी बखूबी जानते हैं इसलिए वो अक्सर हमें डराए रखते हुए हमारे डर को अपने फायदे में इस्तेमाल करते रहते हैं और हम सभी भोंदू बनकर इस्तेमाल होते रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
सबसे बड़े साहब के मातहत भी कुछ जीव कार्यरत होते हैं। उन्हें हम बहुत बड़े साहब कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सबसे बड़े साहब को सबसे बड़ा बनाए रखने में इन बहुत बड़े साहबों का भरपूर योगदान होता है। जहाँ सबसे बड़े साहब का कर्मक्षेत्र बड़े साहब के इर्द-गिर्द ही होता है वहीं इन बहुत बड़े साहबों का कर्मक्षेत्र पूरा कार्यालय होता है। कार्यालय की हर छोटी-बड़ी खबर बहुत बड़े साहबों से प्राप्त कर सबसे बड़े साहब अपने बड़े साहब के चरणों में प्रस्तुत करते रहते हैं। परिणामस्वरुप आये दिन कार्यालय के किसी न किसी बेचारे कर्मचारी पर गाज गिरती रहती है। कार्यालय के कर्मचारी सबसे बड़े साहब के अत्याचारों से तंग आकर दिन-रात उन्हें गरियाते रहते हैं और श्राप देते रहते हैं। एक दिन ऐसा भी आता है जब दुखी कर्मचारियों द्वारा दुखी मन से दिया गया श्राप सिद्ध हो जाता है और बड़े साहब जरा सी गलती होने पर सबसे बड़े साहब से इतना नाराज हो जाते हैं कि सबसे बड़े साहब को सबसे छोटा साहब बनने में अधिक समय नहीं लगता।
बड़े साहब के इर्द-गिर्द लगभग पाँच वर्ग मीटर का घेरा होता है जिसमें तैनात रहते हैं सबसे बड़े साब। दूसरे शब्दों में कहें तो यह घेरा सबसे बड़े साहब का साम्राज्य होता है जिसके वो अघोषित सम्राट होते हैं। आदमी तो आदमी किसी पंछी की भी मजाल है जो इस घेरे में पर भी मार जाये। बड़े साब के कानों के आस-पास ही सबसे बड़े साब मुख रहता है और उस मुख से दफ्तर की हर टुच्ची से टुच्ची बात बड़े साब के कानों से होती हुई उनके मस्तिष्क में सप्लाई होती रहती है।
बड़े साहब बेशक थोड़ा-बहुत नाराज भी हो जाएँ तो कुछ नहीं बिगड़ेगा लेकिन अगर सबसे बड़े साहब हमसे नाराज हो गए तो समझो कि भैंस गई पानी में। हमारे इस डर को सबसे बड़े साहब भी बखूबी जानते हैं इसलिए वो अक्सर हमें डराए रखते हुए हमारे डर को अपने फायदे में इस्तेमाल करते रहते हैं और हम सभी भोंदू बनकर इस्तेमाल होते रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
सबसे बड़े साहब के मातहत भी कुछ जीव कार्यरत होते हैं। उन्हें हम बहुत बड़े साहब कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। सबसे बड़े साहब को सबसे बड़ा बनाए रखने में इन बहुत बड़े साहबों का भरपूर योगदान होता है। जहाँ सबसे बड़े साहब का कर्मक्षेत्र बड़े साहब के इर्द-गिर्द ही होता है वहीं इन बहुत बड़े साहबों का कर्मक्षेत्र पूरा कार्यालय होता है। कार्यालय की हर छोटी-बड़ी खबर बहुत बड़े साहबों से प्राप्त कर सबसे बड़े साहब अपने बड़े साहब के चरणों में प्रस्तुत करते रहते हैं। परिणामस्वरुप आये दिन कार्यालय के किसी न किसी बेचारे कर्मचारी पर गाज गिरती रहती है। कार्यालय के कर्मचारी सबसे बड़े साहब के अत्याचारों से तंग आकर दिन-रात उन्हें गरियाते रहते हैं और श्राप देते रहते हैं। एक दिन ऐसा भी आता है जब दुखी कर्मचारियों द्वारा दुखी मन से दिया गया श्राप सिद्ध हो जाता है और बड़े साहब जरा सी गलती होने पर सबसे बड़े साहब से इतना नाराज हो जाते हैं कि सबसे बड़े साहब को सबसे छोटा साहब बनने में अधिक समय नहीं लगता।
No comments:
Post a Comment
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!