जीवन अमृत
तमाम झंझावातों के उठा - पटक में भी
ज़िन्दगी ,तुम खूब भाती हो
हर घड़ी इंतहा लेने की जिद
तुम्हारी कम नहीं हुई
हर जिद में खरा उतरते - उतरते
मैं भी जीवट हो गई।
विस्मृत नहीं हुईं हैं वो शोखियाँ
रिश्तों की तपिश ,मासूम गलतियाँ
क्या खोया ,क्या पाया का मकड़जाल
चाह कर भी उलझा नहीं पाता है
थपेड़ों की मार जैसे साहिल गले लगाता
मैंने भी हर चोट बखूबी सहेजा है ।
गिरकर संभलने की फितरत
अब तो आरज़ू बन गई है
अंगार पर चलूँ या आँधियों के मध्य
चुनौतियों का निमंत्रण हरदम स्वीकारा है
फिर भी ,हम शतरंज की शह - मात नहीं
जिंदगी मैंने तुम्हे बेहद प्यार किया है ।
अनुभवों की भारी पोटली लिए
मूल्यांकन करती जीवन चक्र का
जीवन की संध्या ढलता सूर्य भले हो
पर सुनहरी सुबहा का भी संदेशा है
फूलों की डालियाँ काँटे भी संजोए है
यथार्थ यही जीवन अमृत में पाया है ।
रचनाकार: सुश्री कविता विकास
धनबाद, झारखंड
बहुत ही भावपूर्ण रचना,आभार.
ReplyDeleteखूब सारी सकरात्मक ऊर्जा लिए ...वाह
ReplyDelete* Bahut Sundar Rachna Kavita Jee....!!
ReplyDeleteनई- पुरानी हलचल में इस प्रविष्टि का लिंक देने के लिए आपको धन्यवाद .आगे भी यह स्नेह बना रहे ..कामना करती हूँ .
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