मनु तुम कब समझोगे ?
मन से कोमल,चेहरे से निर्मल,आँखों से चपल
संचित उजालों से पति का घर प्रदीप्त करती
वह सृजन शक्ति समेटे सृष्टि का क्रम चलाती
फिर भी, बोझ कहलाती,कोख में मार दी जाती
उसे चिर-वंचिता रखने के कुभाव से कब उबरोगे ?
नारी की अहमियत को,मनु तुम कब समझोगे ?
जब उन्मुक्त हो खुली हवा में जीना चाहा, जी भर
तुम्हारी हैवानियत ने पैरो तले है रौंदा
कटे पंख सी फडफडाकर गिर पड़ी धरा पर..आह भर
टुटा संयम,जोड़ न पायी तिनके, न बना फिर घरौंदा
नारी अंतस की कोमल भावनाओं को कब मान दोगे?
अपनी मर्यादा में रहना ,मनु तुम कब समझोगे?
क्या नारी निज अस्तित्व की रक्षा हेतु झुझती रहेगी
तुम्हारे अहम् की पुष्ठी हेतु अग्नि परीक्षा देती रहेगी
या ,पाषाण-खंड बन ,राम के आने की बाट जोहेगी
निज सम्पति समझ जुएँ में उसे दांव पर लगाओगे
औरत की अस्मत का कब तक मोल भाव करोगे ?
नारी नहीं है निष्प्राण , मनु तुम कब समझोगे ....?
ज्यों रश्मियाँ बिन सूरज ,चाँदनी बिन चंदा अधुरा
नर भी होता कब नारी बिना पूरा ,
यज्ञ ,पूजा अनुष्ठान, सभी में नारी का योगदान
नारी ही पुरुष को जीवन के यथार्थ से अवगत कराती
प्रेम समर्पण से अंतर्पट खोल सत्य की राह चलाती
क्या यह चिर-सत्य आत्मसात कर सकोगे
दोनों एक दूजे के पूरक, मनु तुम कब.... समझोगे ?
मनु तुम कब.... समझोगे ?
रचनाकार: सुश्री संतोष भाऊवाला
बंगलौर, कर्नाटक
बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
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हार्दिक धन्यवाद .
Deleteसार्थक अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (9-3-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
आदरणीय वन्दना जी , हार्दिक धन्यवाद ,चर्चा मंच के लिए आभारी हूँ ।
Deleteउम्दा रचना सुन्दर शब्द चयन |
ReplyDeleteअतिशय धन्यवाद
Deleteअतिशय धन्यवाद
ReplyDeletenaari ke man ki vyatha ko jis khushalta se aapne ujagar kiya hai vaha atyant sarahani hai..
ReplyDeletedhanywaad !
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