आज की नारी
बेबस नहीं
उस में हिम्मत है
साहस है
कुछ करने की
इच्छा है
उसे कमजोर
डरपोक
बुज़दिल
मत समझो
आज की नारी
समाज को
संभालती है
अब वह घर में
कैद
अबला नहीं
अब वह दुर्गा
का रूप है
जिसे देख कर
गुंडे थर थर
कांपते हैं
जब नर में
दो मात्राएं
लगती हैं
तब जाकर बनती है
आज की नारी।
रचनाकार: सुश्री रमा शर्मा
अच्छी रचना!
ReplyDelete~सादर!!!
आभार अनीता अनीता जी
Deleteसार्थक रचना .....
ReplyDeleteसाभार.......
आभार अदिति जी
Deleteबहुत सुन्दर ...सहमत हूँ आपसे
ReplyDeleteपधारें " चाँद से करती हूँ बातें "
आभार प्रतिभा जी .....जरुर
Deleteआभार अरूर्ण जी
ReplyDeleteआभार अरुण जी
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