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Friday, August 23, 2013

वह बरगद


वह पुराना बरगद
कहते हैं वह है गवाह
उन शूरवीरों का
जो मर मिटे थे देश पर
इसकी आन औ' शान
बचाने की खातिर
जाने कितने यूं ही
लटका दिये गये 
उन शाखों पर 
जो देती थीं 
दुलार - प्यार व
हरे पत्तों की ठंडी छाँव 
ताज़ा हवा तब 
जब वह बरगद था जवां 
मजबूती से खड़ा हो
देखता सोचता  था
अधर्मी - पापियो 
एक दिन वो भी आयेगा
जब तू भी यूं ही
मिटाया जाएगा
मैं यहाँ खड़ा हो
देखूँगा तेरा भी अंत
वह दिन आया जब
आततायियों की आई बारी 
ढूंढ - ढूंढ कर जड़े उखाड़ीं
रानी लक्ष्मी बाई
नाना व तात्या ने
बिठूर की शान बढ़ाई
चल दिये सब वीर 
कर न्योछावर अपनी ज़िंदगानी 
फलसफ़ा दे प्यार का 
क्रम यूं ही चलता रहे 
देश प्रेम दिलों मे पलता रहे 
न रहे  भेद भाव और  
 हो बैर भाई का भाई से 
आज हम आजाद हुये 
वो बरगद वहीं पर
खड़ा था मुसकुराता 
अब वह बूढ़ा हो चला
हरी पत्तियों का
झुरमुट भी कम हुआ
शाखें भी झुकने लगीं
फिर भी देता रहा वह
अपने प्यार की छाँव
वर्षों का सफर तय करता 
पहुंचा वह अंतिम पड़ाव  पर
प्राण बाकी थे और
कुछ आशा भी 
शायद मेरे बच्चे मुझे देते  
स्नेह और सम्मान
कैसे त्यागूँ अपने प्राण
एक दिन ठिठुरते
कंपकपाते हाथों ने
काट दी जीवन डोर
मै बूढ़ा क्या करता
अलविदा कह चल दिया
पुरानी यादें लेकर
मुस्कुराता बरगद
पड़ा था जमीन पर
जल कर भी 
दे गया तपिश और 
थोड़ी सी राख

अन्नपूर्णा वाजपेयी 

कानपूर, उत्तर प्रदेश 

चित्र गूगल से साभार 

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