वतन में हाँ सियासत और क्या है
सिवा इसके मुसीबत और क्या है
सितम अपने ही ढाते हो जहां पर
वहाँ ग़ैरों की हिम्मत और क्या है
तुम्हारा दो घड़ी दीदार कर लूँ
निग़ाहों की ज़रूरत और क्या है
मेरा कहना तेरा तसलीम करना
इसी का नाम उल्फ़त और क्या है
मोहब्बत करने वालों की तबाही
ज़माने की रवायत और क्या है।
रचनाकार : बलजीत सिंह' 'बेनाम'
उम्दा ग़ज़ल
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