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Friday, October 19, 2012

कविता: मन मेरा बंजारा



सुबह-सुबह जब जागे
बेमन से हम यारा
सोचा हाय खो दिया
सपना इतना प्यारा
उठकर ली अंगड़ाई
चटका तन बेचारा
नहा-धो जो भी मिला
उससे किया गुजारा...

काँधे टांगा थैला
थोड़ा सा जो मैला
उसमें डाली रचना
हमसे भैया बचना
हमने अच्छे-अच्छों को
सुना-सुना के मारा...

जो सुनता है जैसी
न कहते उससे वैसी
अपनी तो आदत में
करना ऐसी-तैसी
जो भी था फन्ने खां
वो ही हमसे हारा...

आगे मिल गये बच्चे
बच्चे कितने  अच्छे
कविता सुनते बड़े प्रेम से
हँसे देख सब लुच्चे
इस जग मे न है
बच्चों सा कोई प्यारा...

चीं-चीं कर चिडियाँ आयीं
डाला उनको दाना
पाप हुये हों अनजाने में
अब है पुण्य कमाना
भूख मिटे इस दुनिया से
करें जतन ये प्यारा...

गालियाँ-कूचे फिरता रहता
मन होकर बंजारा
किसी को हंसा दें दो पल तो
हो जीवन सफल हमारा...


2 comments:

  1. "GALIAN KUNCHE PHIRTA RAHTA,MAN HO KAR BANJARA,KISI KO HSAN DE DO PALL TO,HO JEEWAN SAFAL HMARA"SUNDER BHAW LIYE EK BEHAD KHOOBSURAT RACHNA,SUNDER LIKHNE KE LIYE BADHAI HO SUMIT JI.

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    1. आपके कमेन्टरुपी स्नेह हेतु आभार अमर जी...

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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