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Monday, December 31, 2012

शोभना काव्य सृजन पुरस्कार प्रविष्टि संख्या - 15



विषय: भ्रष्टाचार 

भ्रष्टाचार दिन दूना रात चौगुना बढ़ रहा
हर भारतीय राष्ट्र भूल आपस में लड़ रहा
न जाने आर्यावर्त में ऐसी क्यों लाचारी है!
वोट हँस के देता अशिक्षित, बेगार ही है|

इधर डेढ़ वर्षों से निरंतर संघर्ष जारी है
किंतु विरोधी को सिर्फ सत्ता प्यारी है
डंडे बरसवा दे जो रात में मुंह छिपा के
कैसे मानूं सरकार पे जनता भारी है?!

जनसमूह उमड़ा था कल क्रांति वास्ते
लो अब पृथक हुए अन्ना-केजरी के भी रास्ते
तंत्र प्रवेश ही मात्र बचा एक मार्ग दुश्वारी है|
खत्म करनी यह जो भ्रष्टाचार बीमारी है

आह्वान है हितैषीका आज देश की जनता से
चिकित्सक से, कृषक से, श्रमिक से, अभियंता से
आवाज़ बुलंद करो, नये गाँधी-सुभाष आये हैं
नीतिज्ञ नैतिक संतुलन को लोकपाल विधेयक लाये हैं|

कवि कहे- न कांग्रेस, न अन्ना-अरविन्द कक्ष में
न्याय लोकनायक’, हो केवल सत्य पक्ष में
भ्रष्ट स्पष्ट दिख रहा, बदलो सरकार, अन्यथा
आम मिले न केला, बंधु, होनी हार हमारी है||

 रचनाकार: श्री विकास प्रताप सिंह 'हितैषी'

 बंगलौर, कर्नाटक 

3 comments:

  1. हार्दिक धन्यवाद.. मेरी इस कविता को काव्य सृजन पुरस्कार की प्रविष्टियों में सम्मिलित करने के लिए!

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  2. Ati sundar vikas...filhaal jo desh ke halat hain uske liye best poetry hai....

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