चंपा के फूल
जैसी काया प्रिये तुम्हारी
मन को आकर्षित कर देती
जब खिल जाती हो चंपा की तरह
भौरे, तितलियों के संग
जब भेजती हो सुगंध का सन्देश
वातावरण हो जाता है सुगंधित
और मैं हो जाता हूँ मंत्र मुग्ध
प्रिये जब तुम संवारती हो चंपा के फूलो से
अपना तन
जूड़े में , माला में और आभूषण में
लगता है स्वर्ग से कोई अप्सरा
उतरी हो धरा पर
उपवन की सुन्दरता बढती है
जब खिले हो चंपा के फूल
लगते हो जैसे धवल वस्त्र पर
लगे हो चन्दन की टीके
सोचता हूँ क्या
सुंदरता इसी को कहते है
मैं धीरे से बोल उठता हूँ -
प्रिये तुम चंपा का फूल हो।
संजय वर्मा "दृष्टी "
१ २ ५ ,शहीद भगत सिंग मार्ग
मनावर जिला धार (म.प्र )
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