“ बापू ! बापू !
क्या आज भी आप काम पर नहीं जाएंगे ? क्या हम आज फिर से
भूखे ही रहेंगे ?” नन्ही सोना ने मचलते
हुये अपने पिता से प्रश्न किया ।
“ जाऊंगा !! जान मत खा , भूख से मर नहीं जाएगी “ भावहीन सा बैठा हुआ ननहकू तंबाकू का पैकेट फाड़ कर मुंह मे डालते
हुये बोला ।
सोना फिर बोली , “
बापू कल भी अम्मा ने कुछ नहीं दिया था एक सूखी रोटी ही दी थी सब्जी भी नहीं
थी ।”
“ हाँ तो क्या हुआ ?” तुनकता हुआ बोला ननहकू ।
उसकी पत्नी रुक्मणी जोर ज़ोर से बड़बड़ाने लगी ‘ “ कब तक बैठा रहेगा घर
पर बाहर निकलेगा तभी तो काम मिलेगा । कोई घर बैठे तो रोटी नहीं दे जाएगा न । जब
देखो घर पर पड़े रहने का बहाना ढूंढ ही लेता है मुआ ।”
“ क्या करूँ जान दे
दूँ ? जब काम नहीं मिल रहा
तो !! किस्मत ही खोटी है । जाता तो हूँ रोज नहीं मिलता काम क्या करूँ , मै खुद परेशान हूँ तुम सबकी चिंता है
मुझे ” ननहकू कुछ बिलखता
हुआ सा बोला ।
“ बेटी दो दिन से भूखी
है , कल तो मालकिन ने कुछ
बचा हुआ खाना दे दिया था उससे सबका काम चल गया था । अब मालकिन चली गईं है अपने
बेटे पास और मेरी छुट्टी कर गईं है , मालकिन से कुछ पैसा
मांगा था उन्होने साफ मना कर दिया । अब तक पूरे महीने का पैसा एडवांस ले चुकी हूँ
दूसरे महीने का मांगा था उन्होने मना कर दिया कि अब वे तीन महीने तक तो रहेंगी
नहीं तो काम भी नहीं होगा फिर एडवांस कैसा । ये अमीर लोग होते ही ऐसे है इन्हे कभी
किसी की फिकर नहीं होती ये बस अपना देखते है जियो चाहे मरो इनका काम किए जाओ बस ! ” रुक्मणी बोलते बोलते रुकी ।
ननहकू ने समझाया , “
देख जब तू उनसे पहले ही उधार ले चुकी है तो तेरी मालिकीन कैसे देगी दूसरे
महीने का , तू चिंता मत कर मै
कुछ सोचता हूँ ।”
कुछ सोच कर वह उठा
और अनमने भाव से अपनी टूटी हुई चप्प्लों को पैर मे लटका कर चल दिया । सोच रहा था
कहाँ जाए काम भी बंद है कोई नया काम मिलने से रहा ..........
मौसम बहुत खराब था , सुबह से धूप ने अपना
दरवाजा नहीं खोला था । चारो तरफ धुंध ही धुंध थी इस कड़कड़ाती ठंड मे लग रहा था मानो
रक्त धमनियों मे जम ही जाएगा उस पर आसमान मे छाए बादल सूरज का रास्ता रोके हुये थे
। कई दिनों से मौसम का यही हाल था , लोग घरों मे दुबके
हुये थे ।
ननहकू ने कई जगह काम की तलाश की लेकिन नाकाम रहा ।
सांझ ढले वापस आ गया बेटी बड़ी हसरत से उसकी ओर लपकी : ‘बापू कुछ लाये’ लेकिन खाली हाथ देख बुझे कदमों से वापस
हो ली ।
उसने बेटी को समझाया :
‘ मुझे एक बड़ी जगह काम मिला है कल से जाऊंगा , तब तुम्हारे लिए
खाने को ले कर आऊँगा । तब तक तू ये प्रसाद खा ।‘ हाथ मे पकड़ा हुआ
लड्डू उसको खिला दिया जो रास्ते मे मंदिर के पास से गुजरते हुये किसी ने उसे दिया
था ।
बेटी खुश हो गई , कल बापू काम पर
जाएंगे फिर पैसे मिलेंगे और वह खाना खा सकेगी । उसका नन्हा कोमल मन हजार सपने
सँजोने लगा । और वह जाने कब कब सो गई ।
ठंड बढ़ती जा रही थी , भूखे पेट किसी को
नींद भी न आ रही थी । दोनों जग रहे थे ।
रुक्मिणी धीरे से बोली , “
सो गए क्या ?”
“ कहाँ रे ! एक तो ठंड
ऊपर से भूख , नींद कहाँ आएगी ।”
“ क्या करोगे अगर कल
भी काम न मिला तो ” रुक्मिणी ने आशंका
जाहिर की ।
“ तू बुरा काहे को
बोलती है ? मिल ही जाएगा ” ननहकू लापरवाही से बोला ।
“ सुनो मै सोचती हूँ
कि कल से मै भी काम पर तेरे साथ चलूँगी , सोना को जमना ताई
संभाल लेंगी , दोनों मिलकर कमाएंगे
तो मजदूरी ज्यादा मिलेगी ।”
“ काम तो मिलने दे
पहले ........” झुँझलाता सा. ननहकू
बोला ।
कब उन दोनों को नींद आई पता ही न चला । अगले दिन सुबह
ही रुक्मिणी नहा धोकर बच्ची को जमना ताई के पास छोड़ कर कहीं चली गई , जब ननहकू सो कर जागा तो कोई घर मे न था
। उसने सोचा चलो नहा धो कर काम खोजने निकलता हूँ ।
रुक्मिणी देखने बहुत सुंदर न थी लेकिन भरा बदन और
तीखे नैन नक्श के कारण वह अच्छी दिखती थी । वह कई घरों मे काम खोजने गई लेकिन उसे
काम नहीं मिला वापस उलटे पाँव लौट रही थी , एक जगह बिल्डिंग
निर्माण का काम चल रहा था । उसने वहाँ पर काम की की तलाश करना उचित समझा और
बिल्डिंग की ओर चल दी । कई मजदूर पुरुष और महिलाएं भी काम कर रही थी उसे आशा की
किरण दिखी । आगे बढ़ कर किसी से पूछा ,’ भैया यहाँ काम
मिलेगा क्या ?’ उसने एक ओर इशारा कर
दिया ,’ वहाँ जाकर ठेकेदार
से बात कर लो ।’ वह उधर चल दी , ठेकेदार किसी पर झल्ला रहा था । वह
थोड़ा सहमी बाहर ही रुक गई । जैसे ही ठेकेदार बाहर आया वह दौड़ कर उसके पैरों पर झुक
गई , “ मुझे काम दे दो साब
!! मै शिकायत का मौका नहीं दूँगी , साब !! मन लगा कर
काम करूंगी , बहुत मजबूर हूँ ।
साब मेरी बच्ची दो दिन से भूखी है । ‘ वह झिड़क कर आगे चल
दिया , आ जाते है जाने कहाँ
कहाँ से ।‘ वह जरूरत मंद थी उसे
वहाँ उम्मीद की किरण दिखाई दे रही थी वह फिर भागी , ‘ साब रुको न साब !!
मुझे बहुत जरूरत है । ‘ ठेकेदार रुका उसको
ऊपर से नीचे तक देखा फिर कुटिलता से मुस्कराया बोला , ‘ ठीक है आओ ऊपर कमरे
मे ।’ वह झिझकी पररंतु
उसके पास और कोई चारा ही न था उसके पीछे चल दी ऊपर कमरे मे । जब लौटी तो सकुचती सी
निकलती चली गई उसकी मुट्ठी मे कुछ दस और पचास के मुड़े तुड़े नोट दबे हुये थे ।
घर पहुंच कर उसने वो पैसे अपनी बेटी के हाथ पर रख
दिये , “ मेरी लाड़ो देख माई
को काम मिल गया और ये है आज की मजदूरी ।”
ननहकू ने पूछा , ‘तुझे काम कहाँ मिला
रे !’ ‘ एक बिल्डिंग मे काम
किया था । ‘ उसने अनमने भाव से
उत्तर दिया । ननहकू खुशी से बोला ‘ तो कल भी जाएगी न
वहाँ , मै भी तेरे संग
चलूँगा शायद मुझे भी काम मिल जाए ।’
रुक्मिणी की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे जिसे देख
कर ननहकू सकपका गया । उसने ठेकेदार की कहानी सुनाई किस तरह उसने मदद की । और इतना
ही नहीं उसे अपने घर के काम काज के लिए रखा और ननहकू को बिल्डिंग मे काम के लिये
कल से बुलाया है एक दिन का एडवांस उसी का है । घर पर उसकी बूढ़ी माँ और एक छोटी बच्ची है जिसकी देखभाल के लिए
कोई नहीं है। उसकी पत्नी का कई वर्ष पहले देहांत हो गया है , ठेकेदार खुद दिन भर काम पर रहता है
उन्ही दोनों कि देखभाल करनी है पगार भी अच्छी ही देगा ।
‘ सच आज के जमाने को
देखते हुए मै तो डर ही गई थी कि कहीं ये भी वैसा ही तो नहीं लेकिन वह तो देवता
आदमी है । उसको भगवान लंबी उम्र दे ।’
लेखिका: अन्नपूर्णा बाजपेई
कानपुर, उत्तर प्रदेश
No comments:
Post a Comment
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!