दामिनी के बाद ना जाने कितने और
बलात्कार कांड सामने आ रहे थे | अभी कल ही
अखबार में पढ़ा, दो नाबालिग बहनों को धोखे से घर
में बुला के सामूहिक बलात्कार किया गया पढ़ के कविता का मन खराब हो गया “डर ही नहीं रह गया किसी को क़ानून
का” बड़बड़ाते हुए अखबार एक तरफ़ रख के
टीवी ऑन कर दिया कविता ने वहाँ भी न्यूज चैनल पर एक बलात्कार पीड़िता का बयान चल
रहा था | “उफ्फ्फ्फ़ आखिर कब तक चलता रहेगा ये
सब” ?
कैसे इतना घृणित काम किया उन लोगों ने ऐसा तो कोई जानवर भी ना करे दूसरे
जानवर के साथ यही सब सोचे जा रही थी कविता | काम खत्म कर के सोचती है, कि चलो आज जया के घर होके
आती हूँ बहुत दिन हो गये और उसका फोन भी कई दिनों से नहीं आया है पता नही क्या हाल
है |
कविता उठके जल्दी से साड़ी बदलती है और गेट लोक कर के
तेज कदमों के साथ आगे बढ़ जाती है | वहाँ जाने पर बच्चों
ने बताया कि मम्मी हॉस्पिटल गयीं हैं कविता ने सोचा कि उसके कोहनी में दर्द रहता
है शायद उसी की दवा लेने गई होगी | वो उठने लगी वापस आने
के लिए तब तक जाया की बेटी बोल पड़ी “आंटी आप रुकिए मैं फोन करके मम्मी से
पूछती हूँ कि कितनी देर लगेगी” | उसने फोन मिलाया तो पता चला
कि जया रास्ते में है |
जया उसकी बहुत अच्छी सहेली थी| वो दोनों दस पंद्रह
दिन में एक बार जरूर मिलती थी अपनी हर बात एक दूसरे से बांटती थी पर कुछ था जो वो
छुपा ले जाती थी और कविता महसूस तो करती थी पर उसने भी कभी जोर नहीं दिया न ही कुछ
पूछने की कोशिश की कि तुम क्या छुपा ले जाती हो | बिल्कुल घरेलू व्यवहार
था दोनों का |
कविता ने सोफे पर बैठकर पेपर उठा लिया उसमें भी वही
सब | पढ़के
मन दुखी हो रहा था उसका इतने में जया की बेटी चाय ले आयी | अभी वो चाय पी ही रही
थी कि गेट पर आवाज हुआ | कविता
समझ गई कि जया है बच्चे अन्दर वाले कमरे में थे तो कविता ने ही उठके गेट खोला | जया का चेहरा उतरा हुआ
था | हम
दोनों अन्दर आ के बैठ गये इतने में जया की बेटी उसके लिए भी चाय ले आयी | चाय पीते-पीते ही
कविता ने पूछा “ क्या
हुआ आराम नही मिला किहुनी के दर्द में” ?
जया ने थोड़ा सा झिझकते हुए कहा “ थोड़ा सा बुखार था उसी
लिए गयी थी “ |
ना जाने क्यों कविता को लगा कि जया फिर आज कुछ छुपा
रही है | कविता
ने चाय खत्म करके कप ट्रे में रख दी| जया की चाय पहले ही खत्म हो चुकी थी |
अब कविता ने एक भरपूर नज़र जया के चेहरे पर डाली और
जया कुछ और बोले उससे पहले ही बोल पड़ी “ तुम्हें बुखार कब से आ
रहा है’? जया
थोड़ा सा कसमसाई, जब
कोई झूठ बोलता है तो सामने वाले की नजरें चुभती सी महसूस होती हैं और वो असहज हो
जाता है| कुछ यही हाल जया का भी
था वो अपने को कविता की नजरों से बचाना चाहती थी पर कैसे? कविता को भी कुछ खटक
रहा था जया परेशान लग रही थी और उसे देख के कविता बेचैन थी |
अचानक ही कविता की निगाह उसके दाहिने गाल पर पड़ी वहाँ
गोल काला निशान सा नज़र आया| उसने
चौंककर पूछा ये तुम्हारे गाल पर निशान कैसा? जया अनजान बनते
हुए बोली कहां ? कैसा
निशान “? कविता
सोफे से उठकर दीवान पर उसके पास बैठ गई और अपनी उंगुली उसी गोले में रखके हल्के से
दबाके पूछती है, “कैसे
लगी ये चोट? तब तक उसके गर्दन पर
भी नजर पड़ जाती है उसकी अरे...ये भी... कैसे लगी ये चोट बता ना जया कविता दर्द से
कराहते हुए पूछती है जैसे चोट उसी को लगी हो | और जया बिल्कुल
चुप......अब वो क्या बहाना करे अपनी प्यारी सखी से |
जब दिल दुःख से तड़प रहा हो और कोई प्यार का मरहम लगा
दे या उस घड़ी कोई अपना हमदर्द मिल जाए तो आँसू भला कैसे रुक सकते हैं| जया भी नहीं रोक पाई
और कविता के कंधे पर सिर रख के रो पड़ी | कविता के भी आँसू निकल
पड़े पर वो जया की पीठ सहलाते हुए पूछने लगी “ कुछ बताएगी भी की यूँ
ही रोती जायेगी” | रोने
के बाद दिल कुछ हल्का हुआ जया का और उसने कविता के कंधे से अपना सिर हटा लिया | कविता बोली “ये कैसे हुआ”?
निशान देखके कविता का मन आशंकाओं से भर गया था पर वो
जया से ही सुनना चाहती थी| जया
को चुप देखकर फिर पूछा कविता ने “ बता ना क्या हुआ ये चोट .... अभी बात
पूरी भी नहीं हुई तब तक जया बोल पड़ी “कल रात इन्होने फिर मुझसे जबरजस्ती की, मेरे मना करने पर भी
नहीं माने और ... कहते कहते जया फिर से सुबक पड़ी | कविता का दिमाग जैसे
सुन्न पड़ गया जया बोले जा रही थी “जब भी ये ड्रिंक कर लेते हैं मै डर जाती
हूँ| कल भी ये पी के आये और
जानवरों की तरह ...... और मैं दांत भीचे सब सहती रही, कराह भी नहीं सकती
क्योंकि दूसरे कमरे में बच्चे होते हैं ये बोलते हुए जया ने अपनी ब्लाउज की आस्तीन
ऊपर कर ली “ये
देख” | कविता
ने अपनी नजरें उसकी बांह पे डाली वहाँ भी उँगलियों के निशान साफ़ नजर आ रहे थे | कराह उठी कविता “उफ्फ्फ्फ्फ़ ....
दामिनी के दर्द से कराहती हुई ही तो वो यहाँ आयी थी और यहाँ भी.........दामिनी के
साथ तो जिन लोगों ने ज्यादती की वो उसके अपने नहीं थे पर यहाँ तो अपना पति ही
............. कभी सोच भी नहीं सकती थी वो कि जया का पति ऐसा है |
वो एक प्राइवेट कम्पनी में जनरल मैनेजर की पोस्ट पर
है| पढ़ा लिखा है समाज में
भी अच्छी पैठ है फिर भी अपनी पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार .. मन् उसके प्रति विषाद से
भरता गया | जया
का चेहरा देख के गुस्से से भर गई कविता “दोमुहा सांप” बड़बड़ाई और गुस्से से
भरी हुई उठ गई जया का हाथ पकड़ कर बहार की तरफ़ खीचने लगी “चल मेरे साथ”|
जया एकदम हड़बड़ा गई और कविता को अपनी तरफ खींचती हुई
बोली – “कहाँ” ??
“पुलिस स्टेशन” कविता बोली |
जया ने फौरन अपना हाथ कविता के हाथ से छुड़ा लिया “अरे ....!! पागल हो गई
है क्या”??
“पुलिस के पास जाउंगी तो
लोग क्या कहेंगे, आखिर
वो मेरे पति हैं|”
तू मेरी सबसे अच्छी सहेली है इस लिए मैंने आज बता
दिया नहीं तो मै कभी ना बताती” |
पुलिस स्टेशन जाने की बात सुनकर अचानक जया के चेहरे
का भाव बदल गया था|
अब उसके चेहरे पर दृढ़ता के भाव देखकर कविता वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई |
जया बोले जा रही थी - “तू भी ना .... बच्चे क्या सोचेंगे
..माँ-बाबूजी क्या कहेंगे और पुलिस से मै क्या कहूँगी .. सारे मोहल्ले वाले हँसेंगे
... मेरी बसी बसाई गृहस्थी चौपट हो जायेगी और मेरे बच्चों पर क्या असर पड़ेगा ये
सोचा तूने ...बेकार में आपना ही तमाशा बनाऊँगी और कुछ नहीं बस ले के चल दी पुलिस
के पास .. और अगर मैं तेरे साथ चली भी जाऊं तो क्या पुलिस स्टेशन से लौट के मैं इस
घर में आ पाउंगी?? फिर
कहाँ जाउंगी मै ? और
मेरा घर ..... क्या क़ानून संभालेगा ???
जया ने थोड़ा सा रुक कर फिर बोलना शुरू किया “बस यही एक कमी है उनमें
नहीं तो वो बहुत अच्छे हैं, हर
तरह से मेरा ख्याल रखते है, मेरी हर जरूरत पूरी
करते है, बच्चों
का ख्याल रखते है, अपने
माता पिता का ख्याल रखते है| अब एक इंसान में कुछ तो कमी होती है ना, तो उनमें भी है | इतनी अच्छाइयों को
किनारे कर के एक बुराई के लिए मै उन्हें थाने में खड़ा कर दूँ ?? नहीं ऐसा नहीं कर पाऊँगी मैं| सॉरी कविता” बोलते हुए जया चाय के बर्तन उठा कर किचेन
में रखने चली गयी | .
कविता अवाक हो जया को देख रही थी | क्या बोलूँ सोच नहीं पा
रही थी | अभी-अभी जो जया के
चेहरे पे दुःख और शर्मिंदगी के भाव थे वो पति को सजा दिलाने के नाम पे गायब हो गये
थे | सोचने
लगी कविता – “औरत
पति से खुद चाहे जितना भी अपमानित या प्रताड़ित हो ले पर उसके पति की तरफ कोई
ऊंगुली भी उठा दे तो सब से पहले उसी का कलेजा फटने लगता है| फिर वो उसके प्रति अंधा प्रेम हो या बचपन
से पिलाई गयी घुट्टी का असर जिसमें पति को परमेश्वर बताया जाता है | कैसे समझाऊं उसे जब वो
खुद ही सब सहने को तैयार है अपनी गृहस्थी बचाने के नाम पर | क्या ये गृहस्थी उसके
पति की नहीं? सिर्फ
पत्नी ही सब कुछ सहकर गृहस्थी के नाम पर बलिदान क्यों देती है ? क्या एक औरत अपने पति
की मर्जी के विरुद्ध कुछ भी कर सकती है ? कोई औरत जबरदस्ती अपने पति से कोई काम
करा सकती है”?
कविता ने देखा जया बर्तन रख के कमरे में आ गयी थी
पीछे से उसकी बेटी भी आ गयी | अब कविता कोई बात नहीं कर पाई उसकी बेटी
के सामने | थोड़ी
देर बाद कविता जया से विदा ले कर अपने घर की तरफ़ चल दी, पूरे रास्ते वो यही
सोचती रही कि – “घर
की देख-रेख, बच्चों
की देख-भाल, पति
की सेवा और उसकी ज्यादतियां सब सहकर गृहस्थी को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी सिर्फ
पत्नी पर ही क्यूँ जब कि हर चीज पर अधिकार सिर्फ पुरूष ही जताता है |
जया ने भी क्या गलत कहा था| एक बार पति की शिकायत
थाने में करने के बाद क्या वो फिर से उसी घर में पति के साथ रह सकती थी ? अगर नहीं तो फिर कहाँ जाती वो इस उम्र
में ??
प्रश्न कई थे पर उत्तर एक भी नहीं था कविता के पास | पर शायद समाज की नजरों
में एक अच्छी पत्नी, सुघड़
बहू और समझदार गृहस्थिन इसी प्रकार की नारी को कहा जाता है |
मीना
पाठक
कानपुर, उत्तर प्रदेश
No comments:
Post a Comment
यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!