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Wednesday, August 1, 2012

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो



आप सभी ने हिन्दी के प्रसिद्द गज़लकार दुष्यंत कुमार का मशहूर शेर तो सुना ही होगा- 

कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता
एक  पत्थर तो  तबियत से  उछालो   यारो II

इसी शेर की दूसरी पंक्ति ( मिसरा -ए- सानी ) “एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो” को अपनी पुस्तक का शीर्षक प्रदानकर  डॉ.रवि शर्मा ‘मधुप’ ने सकारात्मक दृष्टिकोण से परिपूर्ण एक प्रेरणादायी पुस्तक को लेखबद्ध किया है. इस पुस्तक मे कुल 27 लेख संकलित हैं. युवाकाल मानव का स्वर्णिमकाल  होता है. इस काल में किए गए प्रयास हमारे जीवन की दिशा निर्धारित कर देते है. आज समाज में साहित्य की बाढ़ आई हुई है, जिसमे से अच्छे साहित्य को चुनने के लिए असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, क्योंकि अधिकतर साहित्य के नाम पर अश्लीलता परोसते है, जिस कारण युवा वर्ग की दिग्भ्रमित होने की आशंका उत्पन्न हो सकती है. ऐसे में अच्छी पुस्तकों को पढ़ना हमारे व्यक्तित्व विकास के लिए बहुत ही जरूरी है. लेखक ने इस पुस्तक के माध्यम से युवावर्ग का उचित मार्गदर्शन किया है. इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने भ्रमित, निराश युवा वर्ग के अंदर आशावादी सोच के संचार द्वारा उनके संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास को चाहा है.
मानव जीवन में प्रत्येक व्यक्ति का सामना आशा व निराशा के क्षणों से होता है. कुछ ही व्यक्ति ऐसे होते है जो विपरीत परिस्थितियों में भी आशावाद का दामन नहीं छोड़ते, अधिकतर व्यक्ति ऐसे समय में अपने घुटने टेक देते है व निराशा के घोर अंधकार में चले जाते है. यदि मानव अंधकार की ओर ही रहता रहेगा तो वह उजाले की तरफ कैसे जा सकता है. लेखक ने स्पष्ट किया है की बाल्यवस्था हमारे जीवन का वह समय होता है, जब हमारे जीवन की नींव बनती है. यदि इस दौरान अच्छी आदतों को विकसित कर लिया जाये तो वे आगे भी सदैव रहती है जैसे समय का महत्व आदि.
किशोरावस्था मानव के जीवन का वह समय होता है जिसमें थोड़ी भी असावधानी अग्रिम भविष्य के लिए खतरा हो सकती है. इस अवस्था में किशोरों में पूर्ण रूप से परिपक्वता नहीं आती है. ऐसे में किशोरों के अभिभावकों व अध्यापकों से प्रेम व सहयोग की आवश्यकता होती हैं और यदि उन्हें यह मिले तो उनका भविष्य उज्जवल हो उठता है.
युवावस्था एक ऐसा नाजुक दौर होता है जहाँ से भविष्य के लिए दो मार्ग निकलते है, एक परिश्रम का तथा दूसरा सरल मार्ग. अधिकतर युवा दूसरा चुनते है जिसका परिणाम होता है असफल, कुंठित व निराशवादी जीवन. जिसके कारण वे हिंसा, नशा व अपराध की ओर रुख कर जाते है.
आज के किशोरों व युवा के सामने अनेक समस्याएं है जैसे परीक्षा, रैगिंग, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, प्रेम व पश्चिमी संस्कृति का प्रभाव इत्यादि. लेखक ने इनपर विस्तार से चर्चा की है व इनसे निपटने के उपाय भी बताए हैं.
हमारे जीवन में संघर्ष का विशेष महत्व है जो भी अपने पूर्ण सामर्थ्य से संघर्ष करता है उसे सफलता अवश्य मिलती है. लेखक ने वाणी के महत्व पर भी बल दिया है, क्योंकि  मानव की उन्नति में वाणी का महत्वपूर्ण स्थान होता है उसके व्यवहार, विचार, शिष्टाचार को उसकी वाणी के द्वारा ही पहचाना जा सकता है.
आज पूरे विश्व में  33  करोड़ 70 लाख अंग्रेजी भाषियों की तुलना में हिन्दी भाषी 33 करोड़  72 लाख  72 हजार है (स्रोत - राजभाषा भारती, स्वर्ण जयंती अंक) अर्थात चीनी के बाद हिन्दी दूसरे स्थान पर है व अंग्रेजी तीसरे स्थान पर और डॉ. जयंती प्रसाद नौटियाल ने अपने वर्षों के शोध से विश्वस्तर पर भाषा प्रयोक्ताओं के आंकड़े जुटाकर यह सिद्ध कर दिया है, कि यदि हिन्दी  भाषियों की संख्या में उर्दू भाषियों को भी सम्मिलित कर दे तो वे चीनी भाषियों से गिनती में ज्यादा हो जाते है यानि हमारी हिन्दी संसार के पहले स्थान पर है. हिन्दी का शब्द-भंडार अंग्रेजी सहित विश्व की किसी भी भाषा से ज्यादा समृद्ध है, क्योंकि हिन्दी की जननी संस्कृत की एक-एक धातु से सैकड़ों नए शब्दों का निर्माण हो सकता है. हमारी हिन्दी भारत की राजभाषा, राष्ट्रभाषा और संपर्क भाषा तो है  ही अब संसार की भाषा बनने की ओर भी अग्रसर है.
पुस्तक में प्रारंभ से अंत तक विभिन्न - विभिन्न विषयों पर लेख रुचिपूर्ण जान पढ़ते है. लेखक ने ह्रदय को छू लेने वाली भाषा का प्रयोग किया है. लेखन में बीच-बीच में कविताओं की प्रेरक पंक्तियों से लेख और भी सशक्त व जानदार बन पड़े है. यह पुस्तक युवावर्ग के लिए एक अच्छी व मार्गदर्शक सिद्ध हो सकती है. असली लेखक तो वही होता है जो समाज के हित के लिए लिख सके और डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’ जी ने इस पुस्तक के माध्यम से यह कार्य किया है. उन्हें यह पुस्तक लिखने के लिए साधुवाद.

समीक्षाकार- संगीता सिंह तोमर 

पुस्तक का नाम- एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो

पुस्तक के लेखक- डॉ. रवि शर्मा 'मधुप', संपर्क- 09811036140

पुस्तक का मूल्य- 200/- रुपये 

प्रकाशक- गौरव बुक्स 
        के- 4/19, गली नं. 5,
        वैस्ट घौंडा, दिल्ली- 110053

4 comments:

  1. बहुत सुन्दर और सार्थक समीक्षा...

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  2. एक के बाद दूसरी किताब की समीक्षा पढ़कर लग रहा है कि अपनी किताब छपवाने के लिए प्रकाशक़ के आजू-बाजू चक्कर लगाने ही पड़ेंगे. तीसरी समीक्षा आप हमारी किताब की भी कर देना. रक्षा बंधन की शुभकामनाएं संगीता जी.

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    1. शुक्रिया!जयदेव जोनवाल जी...आपको भी रक्षाबंधन की शुभकामनाएं.

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