अभी तक रेलवे द्वारा संचालित ट्रेनों में और स्टेशनों पर यह जरुर
सुनने/पढने को मिलता था कि किसी अनजान व्यक्ति के हाथ से कुछ न खाए.यहाँ तक तो बात
फिर भी समझ में आती है कि जिसे आप जानते नहीं है उसके हाथ से कुछ भी खाना-पीना व्यक्तिगत
सुरक्षा के लिहाज से उचित नहीं है. ट्रेनों में ज़हरखुरानी या नशीले पदार्थ खिलाकर
आम यात्रियों को लूटने की बढ़ती घटनाएं रेलवे की इस नसीहत को उचित भी ठहराती हैं
लेकिन किसी से मिले नहीं,मेल-जोल न बढ़ाएं और दोस्ती ही न करें. भला यह कैसी बात
हुई? यह तो भारतीय
संस्कृति की भावनाओं के खिलाफ उल्टी गंगा बहाने वाली बात हुई. कहाँ तो हमारी
संस्कृति मिल-जुलकर रहने,भाईचारे और पंचशील के सिद्धांत की बात करती है,वहीं नए
ज़माने की मेट्रो ट्रेन हमें अपने ही लोगों से दूर जाने का पाठ पढ़ा रही है.वैसे दिल्ली
मेट्रो कई उलटबांसियों का शिकार है.मसलन मेट्रो में चढ़ते ही सन्देश गूंजने लगता है
कि “कृपया बुजुर्गों,विकलांगों और महिलाओं को सीट दें”,लेकिन उस समय सीट पर बैठकर मोबाइल
के दीन दुनिया से परे खिलवाड़ में डूबे लोग आँख बन्द कर सोने का बहाना करके या फिर
कानों में ईयर प्लग ठूंसकर इसे आमतौर पर अनसुना करते रहते हैं. इसीतरह एक अन्य
सन्देश में आगाह किया जाता है कि “ मेट्रो ट्रेन में खाना-पीना वर्जित है”,परन्तु लोग इस निर्देश को ताक पर रखकर पूरी ठसक के
साथ चिप्स,बर्गर और पता नहीं क्या क्या अपने पेट में उतारते रहते हैं. इस मामले में
सबसे आगे हमारी नई पीढ़ी और विज्ञापनों की भाषा में ‘जनरेशन एक्स’ है. इस पीढ़ी ने
तो मानो सारे निर्देशों,सलाह और सुझावों
को रद्दी की टोकरी में डालने का फैसला कर रखा है तभी तो मेट्रो की बार-बार समझाइश
के बाद भी वे ट्रेन के फर्श पर बैठकर मनमानी करते हैं,मेट्रो में प्रतिबन्ध के बाद
भी जमकर एक दूसरे के फोटो खींचते हैं,वीडियो बनाते हैं ,जोर से गाना सुनते-सुनाते
हैं भले ही आस-पास के लोग परेशान हो जाएँ और अब तो उनके कुछ कारनामे न्यूज़ चैनलों
और अश्लील वेबसाइटों तक पर सुर्ख़ियों में हैं.ऐसे में दोस्ती,रिश्ते-नातों और
भावनाओं की क्या अहमियत रह जाती है? शायद मेट्रो भी यही कहना चाहती है कि बस अपना
उल्लू सीधा करो और सामुदायिक को दरकिनार कर आगे बढते रहो.
संजीव शर्मा
संपादक, सैनिक समाचार,
दिल्ली
चित्र गूगल से साभार
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