चतुर चंद ने मोहल्ले के चबूतरे पर बैठकर प्रवचन देना आरंभ कर दिया था. वह गंभीरता का ढोंग धारण करते हुए बोले, “भक्त जनो! मानव के भीतर भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवों का वास है.”
बगल में बैठे फक्कड़ लाल ने चकित होकर पूछा, “अरे भाया मानव तो मानव ही होता है. फिर इसके भीतर भला जीव कैसे घुस गये.”
चतुर चंद पहले तो मंद-मंद मुस्कुराये फिर बोले, “हे फक्कड़ लाल! तुम्हारे असंतोष का निवारण करता हूँ. देखो जब मानव कुकर्म करता है, तो इसका कारण है, कि उसके भीतर से भेडिए नामक जीव के जीवाणु आकार लेना आरंभ कर देते हैं और इस प्रकार मानव भेडिये का रूप धारण कर लेता है. जब उसके भीतर बहादुरी के जीवाणु उत्पन्न होते हैं, तो वह शेर बन जाता है और जब वह धूर्तताभरी चालाकी अपनाता है, तो वह...”
अपनी बात अधूरी छोडकर वह भागे-भागे गये और सामने से आ रहे दुखीराम के चरणों में जाकर लोट गये.
एक से फक्कड़ लाल ने पूछा, “भइया दुखीराम और चतुर चंद में तो छत्तीस का आँकड़ा है. फिर यह चतुर चंद दुखीराम के पैर क्यों पकड़ रहा है?”
उसने बताया “चतुर चंद के बेटे का दाखिला जिस कॉलेज में हुआ है, दुखीराम उसका प्रिंसिपल है.”
फिर अचानक फक्कड़ लाल मुस्कराते हुए बोले, “भक्त जनो! गौर से देखिए. चतुर चंद के भीतर जीवाणु उत्पन्न होकर एक जीव का रूप धारण करते जा रहे हैं. कोई बताएगा कि चतुर चंद ने किस जीव का आकर ग्रहण कर लिया है?”
बगल में बैठे फक्कड़ लाल ने चकित होकर पूछा, “अरे भाया मानव तो मानव ही होता है. फिर इसके भीतर भला जीव कैसे घुस गये.”
चतुर चंद पहले तो मंद-मंद मुस्कुराये फिर बोले, “हे फक्कड़ लाल! तुम्हारे असंतोष का निवारण करता हूँ. देखो जब मानव कुकर्म करता है, तो इसका कारण है, कि उसके भीतर से भेडिए नामक जीव के जीवाणु आकार लेना आरंभ कर देते हैं और इस प्रकार मानव भेडिये का रूप धारण कर लेता है. जब उसके भीतर बहादुरी के जीवाणु उत्पन्न होते हैं, तो वह शेर बन जाता है और जब वह धूर्तताभरी चालाकी अपनाता है, तो वह...”
अपनी बात अधूरी छोडकर वह भागे-भागे गये और सामने से आ रहे दुखीराम के चरणों में जाकर लोट गये.
एक से फक्कड़ लाल ने पूछा, “भइया दुखीराम और चतुर चंद में तो छत्तीस का आँकड़ा है. फिर यह चतुर चंद दुखीराम के पैर क्यों पकड़ रहा है?”
उसने बताया “चतुर चंद के बेटे का दाखिला जिस कॉलेज में हुआ है, दुखीराम उसका प्रिंसिपल है.”
फिर अचानक फक्कड़ लाल मुस्कराते हुए बोले, “भक्त जनो! गौर से देखिए. चतुर चंद के भीतर जीवाणु उत्पन्न होकर एक जीव का रूप धारण करते जा रहे हैं. कोई बताएगा कि चतुर चंद ने किस जीव का आकर ग्रहण कर लिया है?”
वहाँ उपस्थित जनसमूह एक स्वर में बोला, “गिरगिट.”
बहुत ही उम्दा विचार है कृपया शेयर करते रहें, काफी लाभान्वित होंगे हमारे जैसे लोग धन्यवाद.
ReplyDeleteजी शुक्रिया...
ReplyDeleteबहुत सटीक लघु कथा...
ReplyDeleteशुक्रिया कैलाश शर्मा जी...
Deleteबहुत अच्छी लघु कथा, बधाई.
ReplyDeleteशुक्रिया जेन्नी शबनम जी...
Deleteथोड़ा कहा बहुत समझना ... ;-)
ReplyDeleteपूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम और आप सब की ओर से अमर शहीद खुदीराम बोस जी को शत शत नमन करते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन लगाई है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... और धोती पहनने लगे नौजवान - ब्लॉग बुलेटिन , पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
शुक्रिया शिवम मिश्रा जी...
ReplyDeleteगागर में सागर. .... बहुत ही अच्छी लघुकथा .... बधाई.
ReplyDeleteशुक्रिया वीरेश जी...
Deleteबहुत बढ़िया लघुकथा
ReplyDeleteशुक्रिया वंदना जी...
Delete