हवाओं के हाथों में
देखे हैं
इन परिन्दों ने
जब से पैने खंजर
खोले और पसार दिए पंख अपने
ये परिन्दे
उड़ानें ऊँची भरते हैं
हवा से बातें करते हैं
पंजों में धरती
इनके-पंखों पर आकाश
ये परिन्दे
जब चीं-चीं,चीं-चीं करते हैं
मौसम
इनके पंखों से झरते हैं
आग बरसाता सूरज हो
या बादलों की बरसात हो तेजाबी
परिन्दे उड़ते हैं
नीड़ जब से उजड़े हैं
इन परिन्दों के
उड़ते-उड़ते सोते हैं
ये उड़ते-उड़ते जागते हैं
पूरे आसमान को
ये परिन्दे
अपना घर कहते हैं.
रचनाकार- श्री सुरेश यादव
संपर्क- 09717750218


बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
ReplyDeleteaati sundar........
ReplyDeletesunder kavita
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