सादर ब्लॉगस्ते पर आपका स्वागत है।

Sunday, April 26, 2020

ग़ज़ल


वतन में हाँ सियासत और क्या है
सिवा इसके मुसीबत और क्या है
सितम अपने ही ढाते हो जहां पर
वहाँ ग़ैरों की हिम्मत और क्या है
तुम्हारा दो घड़ी दीदार कर लूँ
निग़ाहों की ज़रूरत और क्या है
मेरा कहना तेरा तसलीम करना
इसी का नाम उल्फ़त और क्या है
मोहब्बत करने वालों की तबाही
ज़माने की रवायत और क्या है।
रचनाकार : बलजीत सिंह' 'बेनाम'

Friday, April 17, 2020

चौपाई कोरो ना

अजब फैल गई महामारी 
सारी दुनिया उससे हारी

कोरोना  का रावण आया
खांसी,नजला, कंठ सुखाया।

सांसों की तकलीफें लाया
लॉक डाउन में हमें फंसाया।

रामराज्य को वापिस लाआे
कॉविड से पीछा छुड़वाओ

वैद्य, हकीम नब्ज को जानो
भारत की दुविधा पहचानो।

समय यही हनुमान बुलाआे
जड़ ,कंद फिर से मंगवाओ।

मूर्छा  हर , हर लक्ष्मण जागे
कोरोना तब डरकर भागे

डॉक्टर ,नर्स और सिपाही
मानवता की बने गवाही

उनका कर्जा आज चुकाओ
धन्यवाद कह फर्ज निभाओ।

राष्ट्रधर्म है मनुज निभाओ
हर भूखे को रोज खिलाओ।।


..... मौलिक एवं स्वरचित...
..सरिता यश भाटिया ...

Thursday, April 16, 2020

ये नए मिज़ाज़ का शहर (मर्ज़) है जरा फासले से मिला करो..




“कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती” इस पंक्ति से मेने अपने कोरोना काल के सबक के पहले भाग का समापन किया था. आज में उसमे कुछ और बिन्दुओं को जोड़ने की ओर अग्रसर हु.जिनमें सबसे पहले कोरोना के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए किये जा रहे प्रयासों के बारे में कुछ बात करते है, जैसा कि हम सभी को पता है इसके लिए सभी देशों ने लॉकडाउन को लागू किया है . जो इसके लिए सबसे कारगर कदम के तौर पर दिख भी रहा है. लेकिन क्या लॉकडाउन के द्वारा इस वैश्विक महामारी से पूर्णत बचाव सम्भव है. आज सभी देशों में लोगों को घर पर रहकर अपना बचाव करने की सलाह दी जाती है. साथ ही साथ “वर्क फ्रॉम होम” की भी एक प्रक्रिया को अपनाने पर जोर दिया जा रहा, अर्थात सभी ओफिसेस,फेक्ट्रियाँ और छोटे बड़े उद्योगों, खेतों में भी कामकाज बंद सा हो गया है. इस प्रक्रिया को अचानक अपनाने के लिए कोई भी पहले से तैयार नही था क्योंकि कोरोना ने कार्यक्षेत्र को प्रतिकूलता और असमंजस की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है.जो किसी भी देश के लिए प्रगति और विकास में अवरोध ही माना जायेगा.इस महामारी ने ना केवल भारत जैसे विकासशील देश को बल्कि अमेरिका,स्पेन, जर्मनी,इटली जैसे विकसित देशों को भी डरा दिया है.
जब विकसित देशों पर इस महामारी ने इस हद तक बुरे असर दिखाए है. तो हमारी तरह के विकासशील देशों की क्या बिसात, हमें तो अपने आर्थिक,सामाजिक,वैश्विक,असरों पर गौर करना निहायती आवश्यक है. वर्तमान स्थितियों में देश में दवाइयों,खादयानों जैसे आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति सर्वोपरि है. इसके अलावा लॉक डाउन से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे मजदूरों और रोज़ कमाने रोज़ खाने वालों के बारे में ठोस प्रयासों को लागू करने की जरूरत है. समाज के गरीब तबके से जुड़े लोगों के लिए लॉक डाउन और social distencing का मतलब समझाने के लिए कई माध्यमों का सहारा लेना पड़ सकता है. क्योंकि उनके जीवन का सार ही दो जून रोटी से ज्यादा कुछ नही है.इसलिय अभी की स्थितियों में उनके बीच एक चिंता और भय का माहौल बन गया, जिससे वे अपने को असुरक्षित महसूस कर रहे है. उनको अपनी आजीविका और अपने परिवार के लिए भविष्य से जुडी चिंताएं सता रही है. इन्ही कारणों से उन ने अपने आजीविका वाले स्थानों को छोडकर अपने गृह नगरों को जाना शुरू कर दिया हालाकि उनका ये फैसला उनके लिय भी आसन नही हुआ होगा,पर इस महामारी ने उन्हें वो करने पर मजबूर कर दिया जो उनके भविष्य की योजनाओं पर प्रश्नचिंह है.
आज सभी सरकारें अपना सम्पूर्ण प्रयास कर रही है,ताकि जनता को इस माहौल में कोई परेशानियाँ ना हो.फिर भी इस बात पर सभी का पक्ष भिन्न है.कोई सरकार के इन प्रयासों को ऊंट के मुह में जीरा की संज्ञा दे रहा है.पर अगर देखा जाए तो सरकार केवल मजदूरों या रोज़ कमाने वालों की ही नही सभी की ओर पूरा ध्यान देने का प्रयास कर रही है. जैसे सभी क्षेत्रों से आजीविका पाने वालों के लिए सरकार ने मालिकों को उनका वेतन ना रोकने का आदेश देकर सहायता करने की कोशिश की.गरीबी रेखा से नीचे लोगों को भी तीन महीने तक का राशन आपूर्ति की जा रही. इस विकट परिस्थिति में सभी को एक जुट होकर काम करने की जरूरत है, जिससे देश जल्द से जल्द इस महामारी से निजात पा ले.अब हम कुछ और क्षेत्रों की बात करना चाहेंगे जो इस स्थिति में भी योद्धा की भांति रणभूमि पर अनवरत लगे हुए है इनमे नगरनिगम, नगरपलिका, मीडियाकर्मी, पुलिस, चिकित्सा विभाग, किराना दुकानों के मालिक, सब्जी बेचनेवाले,आदि जो अपने प्राणों की चिंता छोडकर देश सेवा की भावना को नया स्वरुप देने की ओर अग्रसर है. नगरनिगम,नगरपालिका के सभी कर्मी सभी शहरों,नगरों कस्बों,को स्वच्छ रखने में अपनी पूरी क्षमता से लगे हुए है. जिसे से इस महामारी के दौर में कोई और बीमारी ना उत्पन्न हो. चिकित्सा विभाग तो सबसे ज्यादा खतरों के बीच अपनी पूरी ताकत लगाकर रोगियों की तीमारदारी कर रहा है , डॉक्टर्स,नर्सेज,वार्ड-बोयज़,कम्पाउंडर, सभी अपने परिवारों और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारियों को छोडकर अस्पतालों में दिन रात एक कर रहे हैं .पुलिस का योगदान भी इस स्थितियों में किसी से कम नही आँका जा सकता, क्योंकि वे तो सारे देश और प्रदेश में सुरक्षा और कानून सम्बन्धी सभी गम्भीर
दायित्वों का निर्वहन पूरी ईमानदारी और सजगता के साथ कर रहे है. वैसे भी पुलिस का कार्य सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.पुलिस सेवा ऐसा क्षेत्र है,जिसे देश,प्रदेश,शहर,नगर,गाँव तक सभी जगह सुरक्षा और क़ानूनी मसलों को हल करने का दायित्व दिया गया है. इस कारण उनको पुरे तौर से अपने को समर्पित करना पड़ता है. अभी हाल में मैंने कई उदाहरण सुने और देखे जो अपने पारिवारिक दायित्वों को छोडकर देश प्रदेश के दायित्व को महत्व दिया.मध्यप्रदेश में पुलिस के ड्यूटी करने वाली महिला पुलिस अपनी ड्यूटी से फ्री होने पर भी घर पहुचने के बाद मास्क बनाने में लग जाती है. कई स्थानों में पुलिस ने फ़िल्मी गानों की राग पर कोरोना से लोगों को जागरूक करने के लिए गानों का सहारा लिया, कुछ पुलिस कर्मियों ने तो आदर्श प्रस्तुत किये. अपने गृह नगर से अपने ड्यूटी स्थलों तक पहुचने के लिए कई सौ किलोमीटर पैदल चलकर रास्ता तय किया. ये कही ना कही उनके अपने ड्यूटी के प्रति कर्तव्यपरायणता को प्रदर्शित करता है.जो हम सभी के लिए प्रेरणादायक है. अब हम एक और महत्वपूर्ण सेवाओं की बात करते है,जिसने आज महामारी के दौर में हम सभी को सही और सटीक जानकारी पहुचाने में बड़ा योगदान दे रहे है. अब आप सोचेंगे मै किस बारे में बात कर रही  तो मैं आपको बताना चाहूंगी कि मीडिया में संचार माध्यम के तौर आकाशवाणी और दूरदर्शन, समाचार-पत्र, न्यूज़ चेनल्स भी है. इनमे से कई दिन रात एक करते हुए हमारे लिए सार्थक तथ्यों को हम तक पहुचाने का प्रयास कर रहे है. जेसे आकाशवाणी  ने तो कोरोना के बारे में जानकारी देने के लिए एक तो एक घंटे का विशेष बुलेटिन प्रसारित कर रही है, इसके अलावा हर घंटे में कोरोना से जुडी तत्कालिक जानकारियों को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पहुचा रहे है.इन सबके साथ कुछ कोरोना से जुड़े जानकारी के साथ विशेष मनोरंजक कार्यक्रम भी प्रसारित हो रहे है. एक बात जो इस समय जरूरी है वो हे कहाँ, कौन, किस तरह कोरोना के लिए  मदद कर रहे, और senitaizer और पी पी इ का निर्माण कर रहे,और कहा से इन्हें पा सकते है,के बारे में भी जागरूकता फेलाने का काम कर रहे इन सबके साथ चिकित्सकीय विशेषज्ञों से भी परमर्श प्रदान कराया जा रहा है. इन सबके साथ इलेक्ट्रोनिक मीडिया द्वारा भी इस महामारी से बचाव के लिए सरकार के प्रयासों को देश के नागरिकों तक पहुचाने का प्रयास किये जा रहे है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने लॉक डाउन की स्थिति में नागरिकों को घर में रहने के लिए प्रेरित करने के लिए अपने लोकप्रिय मनोरंजक कार्यक्रमों का प्रसारण एक बार पुनः शुरू किया है. जिनमे कुछ विशेष रामायण,महाभारत,चाणक्य, शक्तिमान, सर्कस, सारेगामा लिटिल चेम्प्स आदि. ने दर्शकों की इस असमंजस की स्थितियों में एक अच्छे और पक्के दोस्त की तरह का साथ दिया है.
वैसे भी इस संकट की घडी को हम सब मिलकर सहयोगी बन कर ही पार कर सकते है. जैसे एक बड़ा परिवार का मुखिया अपने सभी सदस्यों के साथ मिलकर किसी भी बड़ी मुसीबत का हल निकल लेता है.वैसे ही हमें भी देश के मुखिया प्रधानमंत्री जी की बातों को मानकर घर में रहकर,-दूर दूर रहकर और शारीरिक दूरी कायम कर लेकिन भावनाओं से परस्पर जुड़कर इस कोरोना की मुसीबत का हल निकाल सकते है. आज की स्थितियों में बशीर भद्र साहब की ए पंक्तियाँ बिलकुल सटीक लगती हैं.
जो गले मिलोगे तपाक से,
 कोई हाथ भी ना मिलाएगा
ये नए मिज़ाज़ का शहर (मर्ज़)
 है
जरा फासले से मिला करो..

.  

Tuesday, April 14, 2020

रिश्तों की नई अवधारणा




हम बतौर मनुष्य एक खास सामाजिक परिवेश के बीच अपना पूरा जीवन जीते है और इस परिवेश के निर्माण में रिश्तों की अहम् भूमिका है लेकिन आज रिश्तों को लेकर अलग तरह की स्थितियां देखने को मिल रही है. आमतौर पर अब लोगों में रिश्ते केवल स्वार्थपूर्ति का माध्यम रह गए है,वे रिश्ते को निभाने से ज्यादा उनका उपयोग अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए करते है. इस माहौल में विश्वास,अपनेपन, ईमानदारी, त्याग,समर्पण,प्यार,मिलनसारिता,आपसी-सामंजस्य,सहयोग जैसे गुण शब्द से ज्यादा कुछ नही नजर आते. ना ही कोई सार समझा पाते है जबकि वास्तव में ये मानव जाति को सर्वगुण सम्पन्न बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.
कुछ समय पहले तक हमारे समाज में संयुक्त परिवार की अवधारणा पूर्णतः तर्कसंगत थी परन्तु आज के परिवेश में एकल परिवार की मजबूत होती परिभाषा ने इसे बेअसर करने में कोई कसर नही छोड़ी है. आज संयुक्त परिवार को महत्व देने वालों को दकियानूसी और रूढ़िवादी सोच का तमगा पहना दिया जाता है. पर क्या संयुक्त परिवार के हिमायतियों के साथ यह व्यवहार शोभनीय है? आज 21वी सदी के परिप्रेक्ष्य में हम सभी की सोच आधुनिक और वैज्ञानिकता से जुडी होना चाहिए. एक ओर हम अपने को आधुनिकता और पश्चिमी संस्कृति के द्योतक मानते है, तो हमें अपनी प्राचीन संस्कृति को भी अपनाते हुए आधुनिकता और संस्कृति के मिश्रण कर एक नया वातावरण बनाने का प्रयास करना चाहिए.
परिवार का आशय केवल माता-पिता, भाई-बहन,दादा-दादी,के बीच जुड़े बंधन भर से नहीं है बल्कि इसे और वृहद रूप में समझना चाहिए. मेरे विचार में परिवार शब्द किसी परिभाषा का मोहताज नही, बल्कि परिवार तो एक विशाल वृक्ष की भांति है,जो सदैव अपनी जड़ों से जुड़ा रहता है और अपने सभी हिस्सों को जोड़कर रखता है, अपने सभी अंगों को पोषित-पल्लवित करता है.जिससे तना,पत्ती,फूल,फल का विकास हो पाता है.इसी तरह परिवार रुपी वृक्ष का आकार भी सदस्यों के अनुसार बढ़ता है. अगर परिवार में सुख,शांति,समृधि,प्यार और अपनापन होता है, तो यह दिन दुनी- रात चौगुनी तरक्की करता है. इस तरह एक फलदार पेड़ की तरह परिवार भी अपने सभी हिस्सों के साथ ज्यादा आकर्षक रूप में प्रकट होता है.
आज वास्तविकता इसके उलट है,हम रिश्तों और परिवार के बीच वो आत्मीयता और विश्वास की कमी पाते है. सारे सदस्य अपनी आजीविका को चलाने की वजह से घर और परिवार से दूर हो रहे है.जिससे समाज में एक अलगाव का भाव दिखाई देने लगा है,सभी अपने जिम्मेदारियों और नौकरी के बीच सामंजस्य बिठाने में ही अपना पूरा समय बिता देते है.इन स्थितियों में वे उत्सवों और त्योहारों में भी एक साथ मिलकर उनका आनन्द नही ले पाते, उनके लिए त्यौहार बस एक रस्म अदायगी से ज्यादा कुछ नही होते. वे अपने एकल परिवार के साथ बाकि सारे रिश्तों को नगण्य मानने लगे है. उनके लिए किसी भी ख़ुशी या अच्छे समाचारों का अर्थ केवल एकल आयोजन तक सीमित हो गया है. क्या यह आज के मशीनी युग का प्रभाव है, या मनुष्य के रोबोट में परिवर्तित होने का संकेत.
आप सोच रहे होंगे ये कैसी बात मैने छेड़ी है तो मै आप को बताना चाहूंगी, जिस तरह हमने सभी क्षेत्रों में प्रगति के नए आयाम स्थापित किये है. उसी तरह हम मानवीय जीवन में भी मशीनों के बीच रहते-रहते स्वयं को रोबोटिक संस्कृति का रूप मान बैठे है. हम में अब मानव के लक्षणों से ज़्यादा मशीनों के लक्षण परिलक्षित हो रहे इसलिए भावनाओं,प्यार, दुःख का कोई असर दिखाई नही देता, पर इस तरह के बर्ताव के लिए क्या सिर्फ मशीन ही जिम्मेदार है? शायद नही, मेरे विचार से हम पर टेलीविज़न सीरियलों और फिल्मों का असर भी काफी है. आजकल की फिल्में और सीरियल रिश्तों को जोड़ने के स्थान पर तोड़ने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. इन सीरियलों में परस्पर रिश्तों में नफरत, षडयंत्र, चालबाजी, धोखा देने, इर्ष्या, द्वेष,दुश्मनी को इस तरह पेश किया जाता है जिसे देखकर कई लोग प्रेरणा तक लेने लगे हैं . आज की पीढी इन्ही से प्रेरित होकर रिश्तों को केवल स्वार्थ पूर्ति के तौर पर अपना रही है. उनके विचार से हमारी बुजुर्ग पीढी रोक-टोक की परम्परा ही निभाना जानती है और उसके बाद माँ-बाप वाली पीढी जब अपने बचपन की बातें सुनाती है तो उसमें भी उन्हें गुणगान ही नजर आता है. इस पीढ़ी के अधिकतर लोग कभी अपने बड़े बुजुर्गों की बातों को सीख के तौर पर लेने के बजाय केवल भाषण जैसा लेते है. क्योंकि उनके विचार से ये बातें केवल एकतरफ़ा सुनाई देने वाली चीज़ है, जबकि परिवार के बुजुर्ग उन्हें कुछ अच्छा सीखने की ओर अग्रसर करना चाहते है. जब भी आजकल की पीढी को कोई बात बोली जाती है, तो पहले तो वे इसे दरकिनार करने की कोशिश करते है भलेही बाद में, भले ही वो बात उनके लिए फायदे की ही क्यों न निकले. आज के समय में हर छोटी बड़ी बात पर रिश्तों में तल्खी आना सामान्य सी बात है पर पारिवारिक रिश्तों में ये तल्खी अजीब ही तो है, उदाहरण के तौर पर जैसे पहले अगर परिवार में बड़े सदस्यों द्वारा छोटों की किसी गलती पर उन्हें  कुछ बोल देते थे, तो उसे एक अच्छे परामर्श की तरह महत्व दिया जाता था पर आज के इस परिवेश में हम देख रहे कि बच्चों की गलतियां होने के बावजूद उनके माता पिता घर के बड़ों को दखलंदाज़ी ना करने की सलाह देने से नही चूकते. जबकि उन्हें पहले बात की वास्तविकता पर गौर करना चाहिए. सभी तथ्यों पर गौर करने के बाद उन्हें ये देखना चाहिए कि अगर उनके बच्चे की गलती है,तो बड़ों को बोलने से पहले बच्चों को उनकी गलती बताकर बड़ों से माफ़ी मांगने को प्रेरित करना चाहिए और घर के बड़ों का घर में सम्मानपूर्ण स्थान बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए.
कुल मिलाकर कहने का आशय यह कोई भी दौर,समय,पीढ़ी,संस्कृति और समाज हो,परिवार के महत्त्व को कम करके नहीं आँका जा सकता क्योंकि परिवार है तभी हमारा अस्तित्व है और हमारे अस्तित्व से ही समाज,देश और दुनिया का वजूद है. इसलिए परिवार से भागिए मत बल्कि उससे जुड़िये और सभी अपनों को जोड़िये क्योंकि अगर जड़ें कमज़ोर हो गयी तो पेड़ को गिरने में देर नहीं लगेगी.