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Thursday, February 28, 2013

शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 12

तुम मुझ में एक जिस्म देखते हो, और मै तुम में एक रूह देखती हूँ, तुम एक पाक रूह हो, और मै एक पाक जिस्म हूँ, यूँ तो तुम बच्चों जैसे मासूम हो, पर तुम्हारी भूख आदमी जैसी है, यूँ तो मै भी यौवन से भरपूर हूँ, पर मुझे तलाश खुदा की है, जिस दिन तुम्हारा दिल, मेरे जिस्म में एक रूह तलाश ले, और मै तेरी रूह का जिस्म तलाशना चाहूँ, उस दिन तय करेंगें, मुलाकात का दिन, और फिर जीयेंगें ज़िन्दगी, भले ही कुछ लम्हों की ....

रचनाकार: सुश्री नीलम नागपाल मैदीरत्ता


गुडगाँव, हरियाणा

7 comments:

  1. आपकी लेखनी खुद एक शरीर है और शब्द एक पवित्र रूह
    हमने तो आपकी सृजनता रूपी. रूह को दिल. से. तलाश. मुलाकात. कर. ली.
    वाक़ई शानदार रचना है




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  2. No doubt this is a brilliant creation and the narration of Body vs Soul .Actually we cant differentiate between soul and Body as Soul resides in this body only ..soul can not be presumed without flesh or body .Even LORD says The Kingdom of God is Within you .Human Body is a precious jewel, it is the Seed of Brahma where only there is possibilitiesof Self realization.,realization of Truth which is GOD ..Omnipotant GOd so only resideswithin all the bodies .Human body is a means of serving with LOVE all the creatures and it requires the vision of the Atma the SOUL .I would like to congratulate the composer who has created it in so deep thought .It is really superb !

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  3. चमक ही चमक है आईने मे
    जरा धूल हटा के देख
    रास्ता यही है तेरे लक्छय का
    जरा शूल हटा के देख

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  4. जिस्म के खोल में रूह की पाकीजगी को खोजती एक बेहद भावपूर्ण रचना ... बहुत सुन्दर!

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  5. और फिर जियेंगे खुशहाल जिंदगी ,भले ही कुछ लम्हों की . बहुत ही भावुक शब्द है

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
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