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Wednesday, February 20, 2013

शोभना फेसबुक रत्न सम्मान प्रविष्टि संख्या - 8

उन्मुक्तता

क्यों मिल गयी संतुष्टि
उन्मुक्त उड़ान भरने की
जो रौंध देते हो पग में

उसे रोते , कराहते

फिर भी मूर्त बन

सहन करना मज़बूरी है

क्या कोई सह पाता है

रौंदा जाना ???
वो हवा जो गिरा देती है
टहनियों से उन पत्तियों को
जो बिखर जाती हैं यहाँ वहाँ
और तुम्हारे द्वारा रौंधा जाना
स्वीकार नहीं उन्हें
तकलीफ होती है
क्या खुश होता है कोई
रौंधे जाने से ??
शायद नहीं
बस सहती हैं और
वो तल्लीनता तुम्हारी
ओह याद नहीं अब  तुम्हें
भेदती है अब वो छुअन
जो कभी मदमुग्ध करती
तुम्हारी ऊब से खुद को निकालती
अब प्रतीक्षा - रत हैं वो
खुद को पहचाने जाने का
टूटकर भी
खुशहाल जीवन बिताने का
क्या जीने दोगे तुम उन्हें
उस छत के नीचे अधिकार से
उनके स्वाभिमान से
या रौंधते रहोगे हमेशा !!!
अपने अहंकार से
इस पुरुषवादी समाज में
आखिर कब मिल पायेगी
उन्हें उन्मुक्तता ???

रचनाकार: सुश्री दीप्ति शर्मा


आगरा, उत्तर प्रदेश 

82 comments:

  1. रौंधने वाला तो होताहै खुश !

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  2. अरे वाह ! बहुत अच्छा है। :)

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  3. रचना प्रभावी लगी, चिंता नहीं चिंतन करना आवश्‍यक है, तभी उद्देश्‍य सफल हो पाएगा।

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  4. Replies

    1. कविता तो ठीक बनी है किंतु मुक्ति का विचार असंगत लगता है ,हाँ असंगतता मे संगति की कोशिस

      Delete
  5. वहुत सबाल छोडे हैं
    लिखने वाले ने लेकिन
    मेरे खयाल से,
    हम सव को
    वदलना होगा
    अपनी सोच को
    अपनी नजर को
    समझना होगा उसके
    मन की भावनाओं को,
    लेकिन अगर
    मैं यह कहूँ तो
    कुछ गलत न होगा
    कयोंकि इक उमर से
    देखता आ रहा हूँ
    अपने आस पास
    इस समाज में या
    अपने परिवार में
    एक पुरूष से जयादा
    औरत को औरत ने
    छलनी किया है,
    कभी वंश चलाने के लिए
    तो कभी ननहीं उमर में
    कितावें छीनकर
    घर के काम के नाम पर...
    कालिदास



    ReplyDelete
  6. वहुत सबाल छोडे हैं
    लिखने वाले ने लेकिन
    मेरे खयाल से,
    हम सव को
    वदलना होगा
    अपनी सोच को
    अपनी नजर को
    समझना होगा उसके
    मन की भावनाओं को,
    लेकिन अगर
    मैं यह कहूँ तो
    कुछ गलत न होगा
    कयोंकि इक उमर से
    देखता आ रहा हूँ
    अपने आस पास
    इस समाज में या
    अपने परिवार में
    एक पुरूष से जयादा
    औरत को औरत ने
    छलनी किया है,
    कभी वंश चलाने के लिए
    तो कभी ननहीं उमर में
    कितावें छीनकर
    घर के काम के नाम पर...
    कालिदास



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  7. jo jajb huye jajbaat banen
    jo dhulak gaya wo paani hai

    aanshoo bahana kamjori**jajbaat
    banao jo banenge tumhaare houslo ki udaan

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  8. कविता के भाव एवं शब्द का समावेश बहुत ही प्रशंसनीय है

    मेरी नई रचना

    खुशबू

    प्रेमविरह

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  9. तमाम स्त्री की वेदना को शब्द... बहुत बढ़िया, बधाई.

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  10. Kalidass ji ... Gope uncle ji ... dinesh ji ....
    bahut bahut aabhar

    ReplyDelete
  11. प्रभावी ओर शशक्त रचना ..

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    Replies
    1. दिगम्बर जी बहुत बहुत शुक्रिया

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  12. vry22222222222 nice deepti.........m really impressed

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  13. बहुत ही अच्छी ख़बर.... मेरी शुभकामनाये दिल से

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  14. वहुत वहुत खुशी हुई
    अभी तो चलना सीखा है,
    अभी तो दौडना वाकी है,
    अभी तो कुछ परवत पार किये हैं,
    अभी तो लांघना आसमान बाकी है......

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  15. बहुत सुंदर अंदाज से आपने एक एसा स्वाल किया है जिसका एक ही जबाब लगता है...आपकी कविता जागेगी .....!

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    Replies
    1. bahut bahut shukriya Sanjeev Kuralia ji

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    2. सफलता मेहनत, लगन से प्राप्त होती है , आपको बहुत बहुत बधाई !

      Delete
  16. bahut sundar kavita hai. shubh kamnayen

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  17. बहुत अच्छी रचना.....
    बधाई दीप्ति!!

    शुभकामनाएं..
    अनु

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  18. its an outstanding efforts by Deepti.

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  19. .....दीप्ती जी.... बेहतरीन .......
    आप भी पधारो स्वागत है ...
    pankajkrsah.blogspot.com

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  20. बहुत २ बधाई ....दीप्ति जी

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  21. ati utkristh rachna hetu dhero badhai swikar kare ..kirti jee ....

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  22. bahut achhi kavita .samay ke sach ko rekhankit karti .badhai Deepti !

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  23. स्‍त्री जीवन के कठोर सच...। कि रौंदे गए हैं जो...वे सदा को हारे नहीं हैं....

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  24. बहुत बढ़ि‍या..मन के भाव बताती एक अच्‍छी कवि‍ता.

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  25. बहुत सुंदर रचना ,
    आकर्षक एवं प्रभावी कविता और शब्दों का शानदार प्रयोग ।
    ऐसी ही कविता हम तक पहुंचाते रहिए दीप्ति जी ।
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद बेहतरीन रचना के लिए

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  26. bahut sundar rachna. bhaavaabhivyakti bahut sundar wah...

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  27. अच्छी रचना है... मुझे ख़ुशी हुई जानकर ...और आपको हार्दिक बदाई भी ............... खुदा करे आप ऐसी हजारो मंजिलो को छुए ........ :)

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  28. अच्छी कविता है। इतने सारे कमेंट्स मेरी बात की पुष्टि करते हैं।

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  29. पहले तो बहुत बहुत बधाई स्वीकार कीजिये ....रचना वास्तव में उत्तम है !

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  30. bahut khoob ......uttam rachana ke liye dher sari badhai....

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  31. नारी सब कुछ निछावर कर सिर्फ बदले में प्यार...सम्मान ...और एक पहचान चाहती है ...और क्या नहीं देती सबको ...पुरुषको, उसके बदले में ....क्या यह बहुत बड़ी कीमत है ...और फिर भी उसे सिर्फ एक पहचान ..अपने स्वाभिमान के लिए इतना गिडगिडाना पड़े ....इतना अधम...कहाँ ले जायेगा ऐसे समाज को ....एक ज्वलंत प्रश्न...जिसका उत्तर, क्या है पुरुष प्रधान समाज के पास ....

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  32. बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  33. स्त्री मन की सच्ची अभिव्यक्ति.

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  34. bahut badhai Deepti ji, badhia kavita

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  35. hamesh ki tarah a kavita bi outstanding hai... jo batati hai apne samaj me naitik shiksha or moolyo ka patan ho gaya hai... god bless INDIA!

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और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
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सुमित प्रताप सिंह,
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