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Sunday, August 5, 2012

सुमित के तड़के




मित्रता मानवता का वह पावन शोध है
जिसमें मैं और तुम नहीं हम का बोध हैI

व्यवस्था में परिवर्तन आएगा कैसे भला
आपका क्रोध तो कुछ पल का क्रोध हैI

नग्नता घूमती है प्रसन्न हो इन दिनों
आधुनिकता की कैद में सभ्यता निरोध हैI

उसने ठीक से आपको पहचाना नहीं
जाने दीजिए उसे वह बालक अबोध हैI

गरीबी अमीरी से नज़रें मिलाएगी एक दिन
प्रतीक्षा कीजिए बस कुछ दिन का रोध हैI

6 comments:

  1. बहुत सुन्दर...हरेक शेर लाज़वाब..

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  2. "greebi ameeri se njren milayegi ek din,partiksha kijiye bas kuchh din ka rodh hai"sumit ji sunder bhaw liye bahoot hi shandar tarke,badhai ho.

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  3. achhi gajalen padhne ko mil nahin paaten.
    is mukammal aur dilkash gajal ke liye hardeik badhai.

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    1. शुक्रिया रघुनाथ मिश्रा जी...

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  4. श्रेश्त प्रस्तुति. बधाइ- शुभ कामना.
    डा. रघुनाथ मिश्र्

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यहाँ तक आएँ हैं तो कुछ न कुछ लिखें
जो लगे अच्छा तो अच्छा
और जो लगे बुरा तो बुरा लिखें
पर कुछ न कुछ तो लिखें...
निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!