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Friday, September 6, 2013

नाओमी - लघु कथा

श्रंगार टेबल पर पड़े समान को बड़ी हसरत से देख रही थी वह, कल तक ये सारा समान उसका था ।  आज एक ही पल मे  ये सारी चीजें उसकी पहुँच से दूर हो गईं थी । अभी हाथों मे मेहँदी भी वैसी ही लगी थी उसका रंग भी फीका न हुआ था उसे याद हो आया जब कुछ ही दिन पूर्व उसका ब्याह हुआ था, उसके पति ने दोनों हाथों  को पकड़ कर चूमते हुए कहा था – “ कितनी सुंदर मेहंदी लगी है जी चाहता है इन हाथों की मेहंदी कभी न छूटे मै यूं ही देखता रहूँ ।“ लजाते हुए नाओमी ने अपने हाथ खींच लिए । उसके सुंदर चेहरे को जैसे ही उसके पति ने अपने हाथ मे लेना चाहा , वह लाज से दोहरी हो गई , “धत !!!!!!!!!” कह कर वह छिटक कर दूर खड़ी हो गई । इतने मे फोन की घंटी बज उठी  , उसके पति ने फोन उठाया और कमरे से बाहर निकल गया । उसके बाद वह न लौटा । सरहद पर जंग शुरू हो गई थी उसका बुलावा आ गया था वो चला गया । तीन दिन बाद उसके शहीद होने खबर आई । माँ पछाड़ खाकर गिर पड़ी ।  नाओमी के तन पर से एक एक कर सारे सुहाग चिन्ह मिटा दिये गए जो उसे उसके फौजी पति ने चार दिन पूर्व ही दिये थे परंतु उसके हाथों की मेहँदी ज्यो की त्यों लगी थी । उसने बड़ी हसरत से सबकी ओर देखा मानो कह रही हो –“नहीं ये मेंहदी न हटाओ इसे यों ही रहने दो इस पर मेरे पति का प्यार अंकित है ।” सभी के मुंह से निकला –“न जाने कौन सी घड़ी मे इस घर मे कदम रखा आते ही पति को खा गयी ।“ पर उसकी पीड़ा न कोई समझ रहा था न समझना चाहता था ।

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!