व्यथित हृदय की व्यथा तुम्ही हो, उर अंतर की कथा तुम्ही हो ,
यह अतीत कैसे विसराऊँ ,
एक बार आकर बतला दो , कैसे प्रेम तराने गाऊँ .
मेरे मस्तक की गरिमा पर, अपने होठों के स्पर्श से ,
तुमने जो अनुबंध लिखे थे .
और तुम्हारे आकर्षण पर ,मन के भावों को गरमा कर ,
मैंने अनुपम छंद लिखे थे .
स्मृति धन की इस गठरी को कैसे अपने सीस उठाऊँ .
एक बार आकर बतला दो कैसे प्रेम तराने गाऊँ ......................
मैंने कितनी बार सुना था, आनी जानी इस दुनिया में ,
मिलन विरह का दुःख देता है .
पर मन ने ऐसा समझाया ,प्रिय के कोमल आलिंगन मै,
केवल प्यार जनम लेता है .
दूर गए तो बढ़ी वेदना कैसे तुमको पास बुलाऊँ .
एक बार आकर बतला दो...............................................
बगिया के उस विजन क्षेत्र में , सारे जग से आँख बचा कर ,
कुछ पल की ममतामय चितवन .
लज्जामय कपोल अरुणारे, झुकी झुकी बोझिल पलकों से ,
प्रियतम तेरा मौन समर्पण .
निराधार रह गई जिंदगी , अब कैसा आधार बनाऊँ.
एकबार ........................................................................
BAHUT SUNDER KAVITA HAI.
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteसुन्दर भाव लिए कविता...
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