(१)
चुभने लगती जब आँखों में
सुदूर सितारों की रोशनी भी,
हर सीधी राह भी
जगा देती एक डर
भटक जाने का,
रिश्तों की हर डोर
जब हो जाती कमज़ोर
बार बार टूटने
और गाँठ लगने से.
तब चाहती ज़िंदगी
एक ऐसा अनज़ान मोड़
न हो जिसकी कोई मंज़िल,
जो छुपा ले अस्तित्व
और मन का अँधियारा
किसी गहन अँधेरे कोने में.
(२)
क्यों हो जाती हैं राहें
शामिल वक़्त की साजिश में
और भटका देती हैं राही
किसी न किसी मोड़ पर.
कंक्रीट के ज़ंगल में
ढूँढता है अपना अस्तित्व
और अपनी आवाज़
जो खोगयी कोलाहल में मौन के,
न जाने किस मोड़ पर.
कैलाश शर्मा
चुभने लगती जब आँखों में
सुदूर सितारों की रोशनी भी,
हर सीधी राह भी
जगा देती एक डर
भटक जाने का,
रिश्तों की हर डोर
जब हो जाती कमज़ोर
बार बार टूटने
और गाँठ लगने से.
तब चाहती ज़िंदगी
एक ऐसा अनज़ान मोड़
न हो जिसकी कोई मंज़िल,
जो छुपा ले अस्तित्व
और मन का अँधियारा
किसी गहन अँधेरे कोने में.
(२)
क्यों हो जाती हैं राहें
शामिल वक़्त की साजिश में
और भटका देती हैं राही
किसी न किसी मोड़ पर.
कंक्रीट के ज़ंगल में
ढूँढता है अपना अस्तित्व
और अपनी आवाज़
जो खोगयी कोलाहल में मौन के,
न जाने किस मोड़ पर.
कैलाश शर्मा
कवितायेँ संक्षिप्त हैं, किन्तु गहन अर्थ लिए हुए हैं...
ReplyDelete