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Thursday, November 26, 2015

व्यंग्य : एक पत्र आमिर खान के नाम


प्यारे आमिर खान
सादर असहिष्णुस्ते!
आपको यह पत्र को लिखने का मेरा मन तो बिलकुल भी नहीं था, किन्तु सुना है कि आप दोनों मियाँ-बीबी इन दिनों बहुत भयभीत चल रहे हैं इसलिए सोचा कि शायद मेरा यह पत्र आपके तथाकथित भय में थोड़ी-बहुत कमी करने में योगदान दे सके। विभिन्न सूचना माध्यमों से ज्ञात हुआ कि आपकी पत्नी इन दिनों बहुत भयभीत हो रखीं हैं और उनके साथ आप भी भय के वातावरण में जीने को विवश हैं। अब तनिक ये भी बताने का कष्ट करेंगे कि आप और आपकी पत्नी किस प्रकार के भय का अनुभव कर रहे हैं। अरे भई हमने तो सुना था कि आप बड़े दिलेर हैं और फिल्मों में अकेले ही कई गुंडों को ढेर कर डालते हैं तथा अपने राष्ट्रप्रेम के कारण देश के दुश्मनों के छक्के छुड़ा डालते हैं। मतलब कि वो सब हवा-हवाई ही है।
आपने हमारे देश और देशवासियों को असहिष्णु करार दिया पर आप ये क्यों भूल गए कि इस असहिष्णु देश के वासियों ने आपको और आपकी फिल्मों को सिर-आँखों पर बैठाकर फर्श से अर्श पर बिठा दिया। आप बार-बार अपने को अल्पसंख्यक घोषित कर क्या सिद्ध करना चाहते हैं। अपना देश जाति और धर्म से ऊपर उठने का जब भी प्रयास करता है उस समय आप और आप जैसे महानुभाव कोई न कोई शिगुफा छोड़ देते हैं और देशवासी जाति-धर्म के चक्कर में उलझकर घनचक्कर बन जाते है। हमारे देश की जनता उलझन में बैठी अपना सिर खुजा रही है कि इस संसार में ऐसा सहिष्णु देश कौन सा है जहाँ अल्पसंख्यक व्यक्ति देश का राष्ट्रपति हो सकता है, देश की राजधानी का उपराज्यपाल बन सकता है, फिल्मों में सुपरस्टार बन सकता है और बहुसंख्यक समुदाय की लड़कियों से एक को छोड़ दूसरी से आराम से विवाह कर सकता है तथा देश और बहुसंख्यकों के धर्म के विरुद्ध कुछ भी ऊल-जलूल बक सकता है। क्या आप देश की जनता की इस उलझन को सुलझा सकते हैं? पर आप तो उलझन सुलझाने की बजाय और अधिक उलझाने के लिए कमर कसे हुए हैं। शायद आपको भी देश का बदला हुआ नेतृत्व सहन नहीं हो पा रहा है। लगता है आप भी उन्हीं बीते दिनों में खो जाना चाहते हैं जब जनता घोटालों व अव्यवस्था से त्रस्त थी। या फिर कहीं आपको भी सम्मान लौटाऊ लेखकों की भाँति कोई प्रलोभन तो नहीं दिया गया है?
भय से याद आया कि आप इन दिनों बिना बात में इतने भयभीत हो रखें हैं कि देश छोड़ने तक का विचार कर रहे हैं फिर जब मुम्बई बम विस्फोटों से थर्राई होगी तब तो जाने आपका क्या हाल हुआ होगा? अच्छा जब बड़ा पेड़ गिरने से धरती काँपी थी तब आपका कलेजा क्यों नहीं काँपा था या फिर जब कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार हुए थे तब आपने देश छोड़ने के बारे में क्यों नहीं सोचा?
आपको ज्ञात होना चाहिए कि आप देश के जाने-माने अभिनेता हैं और देशवासियों को आपसे एक सुलझे हुए व्यवहार की अपेक्षा रहती है। आपके इस प्रकार के व्यवहार से आपके उन प्रशंसकों को घोर निराशा होती है जो अपनी मेहनत की कमाई में से कुछ भाग आपकी फ़िल्म देखने के लिए होम कर डालते हैं तथा आपके नित-प्रतिदिन बढ़ते जाते धन भंडार में होती वृद्धि में योगदान देते हैं।
इसलिए जिस प्रकार आप अपने प्रशंसकों से अपनी फ़िल्में सुपरहिट करवाने की उम्मीद रखते हैं उसी प्रकार उनकी भी आपसे आशा रहती कि आप उनकी भावनाओं का भी ध्यान रखते हुए उन्हें ठेस न पहुंचायें। कहीं ऐसा न हो कि आपके वो प्रशंसक, जो देश के बहुसंख्यक समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं, आपके असंयमित व्यवहार से बिदक जाएँ। फिर हिंदी फिल्मों में अभिनय तो दूर की बात है कोई आपको स्पॉट बॉय की नौकरी भी देने का साहस भी नहीं करेगा। आशा है कि आप मेरे सुझावों पर गंभीरता से ध्यान देंगे। और क्या लिखूँ थोड़े लिखे को ज्यादा समझना। बाकी आपके फिर से असंयमित होने के बाद।
तब तक के लिए सहिष्णुतापूर्ण सलाम

आपका भूतपूर्व प्रशंसक
एक सिनेमाप्रेमी भारतीय
लेखक : सुमित प्रताप सिंह

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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!