जंगल के बिल्कुल किनारे बाले तालाब पर लगे बरगद के पेड़ पर उठने वाली भिनभिनाहट ने पेड़ के बाकी पक्षियों को परेशान कर दिया ।मामला अत्यंत गंभीर सा था सो सभी कौतुहल बस मधुमक्खी के छत्ते की तरफ देख रहे थे छत्ते की सभी मधुमक्खियाँ अपने छत्ते से बाहर इक्कठे होकर नारे बाजे कर रहीं थीं।......हमारी मांगे पूरी करो .......हम सब एक है........मधुमक्खी एकता जिंदाबाद.......
आवाज सुनकर रानी मक्खी तुरंत अपने घर से बाहर आ गयी उसने अपने जीवन में पहली बार ऐसा नजारा देखा था सो समझ में नहीं आ रहा था कि समस्या क्या है और यह क्या हो रहा है और आखिर ये सब लोग कर क्या चाहते हैं
.......क्या समस्या है ....ये सब क्या हो रहा है......रानी मक्खी ने कड़ककर पुछा।सभी मधुमक्खी एक सुर में बोली आपकी मनमानी नहीं चलेगी.....हमारी मांगे पूरी करो।
रानी मक्खी इतनी सारी आवाज एक साथ सुनकर हैरान रह गयी और उसने चिल्लाकर कहा ......एक एक करके बोलो......सभी मक्खियाँ फिर चिल्लाने लगी ।क्रोधित रानी मक्खी ने आदेश दिया कि केवल एक मक्खी ही बात करेगी...कुछ देर के लिए सन्नाटा खिच गया और खुसुर पुसुर के बाद भीड़ से एक बुजुर्ग मक्खी ने बाहर आकर रानी मक्खी को नमस्कार कर बात सुरु की......हम जबसे पैदा हुई है हमारा सारा काम एक ढर्रे पर आपके द्वारा दिए गए आदेश पर चल रहा है जिसमे कभी कोई बदलाव नहीं किया गया श्रमिक मक्खियाँ प्रतिदिन सुबह से शाम तक फूलों से पराग इकट्ठा करतीं है और सैनिक मक्खियाँ बस छत्ते में पड़ी पड़ी आराम फरमाती रहती है हमें कोई छुट्टी भी नहीं दी जाती है हमारे साथ हमारी पत्नियों से भी उतना ही काम लिया जाता है इसलिए हमारे काम में बदलाव किया जाए और जिस प्रकार मनुष्यों में समानता का अधिकार दिया गया है उसी तरह हमें भी अधिकार मिलने चाहिए।
रानी मक्खी की समझ में आ गया कि कोई इंटेलीजेंट मक्खी मनुष्य की सामाजिक व्यवस्था से प्रेरित होकर नेता बन गयी है और उसी के इशारे पर ये सब हो रहा है लेकिन बात अधिक ना ख़राब हो सो उसने तुरंत आदेश किया कि आप में से कोई पांच मक्खियाँ समित बनाकर अपनी सारी मांगे बताएं और अभी सब लोग अपने अपने कोटर में जाकर आराम करें।
आदेश मिलते ही सभी मक्खियों ने दो श्रमिक मक्खियों और दो सैनिक मक्खियों और एक महिला मक्खी को मिलाकर समिति तैयार कर ली और उसी दिन शाम को रानी मक्खी के पास पहुच गए ।
रानी मक्खी बोली....बताओ क्या चाहते हो तुम सब ....हम चाहते है कि हमारे काम में अदला बदली हो ,पहला प्रस्ताव श्रमिक मक्खी की तरफ से आया ....क्या सैनिक माक्खियों को ये मंजूर है रानी ने पूछा...सैनिक मक्खियों के मन में भी बाहर घुमने की ख्वाहिश थी सो उन्होंने तुरंत हामी भर दी। ...और क्या चाहिए......साल में कम से कम एक महीने का अवकाश और महिलाओं को बच्चों की देख रेख के लिए 3 महीने का विशेष अवकाश महिला मक्खी ने तुरंत कहा ..........रानी मक्खी जानती थी कि अभी सब विरोध में है सो उसने तुरंत हां कर दी।
अगले दिन से मधुमक्खी समाज की व्यवस्था नए नियमों के अनुसार प्रारंभ हुई सैनिक मक्खियाँ शहद के लिए पराग लेने जंगल चली गयीं और श्रमिक मक्खियों ने सुरक्षा सम्हाल ली मादा मक्खियों ने प्रसूति कालीन अवकाश का आवेदन लगा दिया और छत्ते में आराम फरमाने लगीं। शाम को जब दिन भर के काम की समीक्षा हुई तो पता चला कि आज रोज के मुकावले पराग आधा ही इकट्ठा हुआ है जब कारण पुछा तो पता चला कि सैनिक मक्खियों को पराग वाले फूलों की पहचान ही नहीं है और पराग के चक्कर में घूमते घूमते थक कर चूर हो गयी है श्रमिक मक्खियाँ मंद मंद मुस्करा रही थी ।
प्रतिदिन लगभग यही क्रम चलने लगा ।पराग कम इकट्ठा होने से शहद का उत्पादन कम होने लगा उधर श्रमिक मक्खियों दिन भर पड़े पड़े सोती रहती थी सो शहद चोरी की घटनाएँ बढ़ने लगी और सैनिक मक्खियाँ ज्यादा बीमार पढ़ने लगीं। एक महीने के बाद छत्ते का शहद उत्पादन घटकर 40 प्रतिशत रह गया और खुद के खाने लायक शहद भी नहीं बचा ।श्रमिक मक्खियों की कमर छत्ते में पड़े पड़े अकड़ गयी थी छत्ते की पूरी व्यवस्था तहस नहस हो चुकी थी पर रानी मक्खी ने कोई हस्तक्षेप नहीं किया सभी परेशान थे पर रानी मक्खी से कौन कहे लेकिन एक दूसरे पर आरोप लगाने लगे ।
एक महीने बाद रानी मक्खी ने सभी की बैठक बुलाई और पूछा ......कैसा लग रहा है नए काम से .....सभी चुप थे ......सुना है छत्ते में खाने लायक भी शहद नहीं बचा है ,रानी ने प्रश्न पूछा तो सभी एक दूसरे पर इल्जाम लगाने लगे।
रानी ने बात शुरू की....... मुझे पता है कि कारण क्या है .... प्रकृति ने हमें विशेष कार्यो के लिए बनाया है सैनिक मक्खियाँ पराग नहीं चुन सकती है इसके लिए उन्हें सिखाना पड़ेगा और उसमे काफी वक़्त लगेगा........इसी प्रकार श्रमिक मक्खियाँ भी सुरक्षा नहीं कर सकती है क्यूंकि उन्हें सुरक्षा के तौर तरीके नहीं पता है ....मादा मधुमक्खियाँ अपनी जिम्मेदारी से भागना चाहती है इसलिए उन्होंने छुट्टी ले ली है ......हम मनुष्य नहीं है हमारी सामाजिक व्यवस्था प्रकृति की देन है उसमे थोडा सा भी परिवर्तन हमारे लिए नुकसानदायक साबित होगा .....मनुष्य की प्रकृति के साथ छेड़छाड़ से वैसे भी हमारा अस्तित्व खतरे में है और आप सब उनकी व्यवस्थाओं से प्रेरित हो रहे है ।हम सब प्राकृतिक व्यवस्थाओं में ही भरोसा रखते है और उसी से ही हमारा जीवन सुखमय रहेगा
कल से सभी अपने अपने कार्य पूर्व की व्यवस्था के अनुसार ही करें। सभी मधुमक्खियों ने सहमति प्रदान की और अपने कार्य में लग गयीं।
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निवेदक-
सुमित प्रताप सिंह,
संपादक- सादर ब्लॉगस्ते!